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________________ २०२ संस्कृत साहित्य का इतिहास दो बार उल्लेख मिलता है। यदि यह छन्दोदिन्थिति दरकी का वी प्रन्ध है; जिसके होने में सम्भावना कम और सन्देह अधिक है, तो सुबन्धु हण्डी के बाद हुश्रा । यह ग्रन्थ नृए विक्रमादित्य के बाद गही पर बैठने वाले सच से पहले राजा के राज्य में लिखा गया था, इसके कुछ प्रमार उपलब्ध हैं:--(क) वासवदत्ता की भूमिका के दस पछा में पाया है, “गतवति भुवि विक्रमादित्ये" (ख) दासवदत्ता का एक तिलककार नरसिंह बैच कहता है, "कविरथं विक्रमादित्यसभ्यः। तस्मिन् राज्ञि लोकान्तरं प्राप्ते एतं निबन्धं कृतवान" (यह कवि विक्रमादित्य का सभासद् था । महाराज विक्रमादित्य के स्वर्गवामी होने पर इसने यह अन्थ लिखा); (ग) महाशय हाल को उपलब्ध होने वाली वासवदत्ता की हस्त-जि खित प्रति बतलाती है कि सुबन्धु वररुचि का भानजा था । यह वररुचि भी विक्रमादित्य के दरबार का एक रत्न कहा जाता है। परन्तु केवल इसी आधार पर किसी बात का पक्का निश्चय नहीं हो सकता। सुबन्धु का "स्वास्थितिमिबोद्योतकरस्वरूपा बौद्धसङ्गतिमिवालङ्कारदूषिताम्" कथना बड़े काम का है। क्योंकि इसमें उद्योकर तथा बौद्ध सङ्गस्थलङ्कारकार धर्मकीर्ति का नाम पाया है। उद्योस्कर और धर्मकीर्ति दोनों ही ईसा की छठी शताब्दी के उत्तराई में हुए हैं। अतः हम सुबन्धु को छठी शताब्दी के अन्तिम भाग के समीप रख सकते हैं। यह तो निश्चित ही है कि वासवदत्ता इर्षचरित से पहले लिखी गई है। कथावस्तु-इस कथा का नायक चिन्तामणि का शुणी पुत्र कन्दर्पकेतु था। एक प्राभातिक स्वप्न में किसी षोडशो सुन्दर कन्या को देखकर वह अपने सुहृद् मकरन्द को साथ ले उसकी तलाश में निकल पड़ा। घूमते हुए वे विन्ध्यपर्वत में जा पहुंचे। वहाँ एक रात कन्दप केत १छन्दोविचितिरिव मालिनी सनाथा. और छन्दोविचितिं प्राजमानतनुमध्याम [हल' द्वारा सम्पादित संस्करण, ११६, २३५] ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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