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________________ -काव्य और पू २०३ ने रात में देर से वृक्ष पर लौट कर आए हुए शुक को धमकाती हुई शारिका को सुना । फिर शुक ने अपने विलम्ब का कारण बताते हुए शारिका को एक कथा सुनाई। इस कथा से कन्दर्पकेतु को अपनी प्रेयसी का कुछ पता मिल गया । वह कुसुमपुर के अधिपति नृप शृङ्गारशेखर की इकलौती बेटी थी। उसका नाम वासवदत्ता था । उसने भी कन्दर्पकेतु के समान सुन्दर एक तरुया को स्वप्न में देखकर उसकी तलाश में अपनी अनुचरी मालिका को भेजा था । कुसुमपुर में रागालुग युगका के सम्मिलन का प्रबन्ध हो गया । बिल्कुल अगले ही दिन वासवदत्ता का विवाह विद्याधर राजकुमार पुष्पकेतु के साथ हो जाने का निश्चय हो चुका था । श्रतः कन्दर्पकेतु और वासवदत्ता दोनों के दोनों तत्काल एक जादू के घोड़े पर सवार हो उडकर विन्ध्यपर्वत में जा पहुँचे । प्रातः कन्दर्पकेतु ने वासवदत्ता को अनुपस्थित पाया तो उसने प्रेस से पागल होकर आमवात करने का निश्चय कर लिया, किन्तु उसी तय एक आकाशवाणी ने प्रेयसी के साथ पुनः मिलाप होने की श्राशा दिलाकर उसे श्रात्मघात करने से रोक दिया। कुछ महीने के बाद एक दिन कन्दर्पकेतु ने वासवदत्ता को पाषाण की मूर्ति बनी पाया जो उसके छूते ही जीवित हो उठी। पूछने पर वासवदत्ता ने बताया कि जब अपने अपने स्वामी के लिए मुझे माल करने के उद्देश्य से दो सेनाएँ आपस में युद्ध करने में व्यन थीं, तब मैं अनजाने उस तरफ चलो गई जिस तरफ स्त्रियों के जाने की मनाही थी । वहाँ मुनि ने मुझे शाप देकर पाषाणी बना दिया। इसके पश्चात कन्दर्पकेतु उसे लेकर अपनी राजधानी को हौद श्राया और वहाँ वे दोनों सुख से रहने लगे । + वासवदत्ता की गिनती, आख्यायिकाओं में नहीं, कथाओं में की जानी चाहिए; इसका प्रतिपाच अर्थ हर्ष चरित की अपेक्षा कादम्बरी से अधिक मेल खाता है । हमें इसमें स्वप्नों में विश्वास, पक्षियों का वार्तालाप, जाडू का घोड़ा, शरीराकृति का परिवर्तन, शाप का प्रभाव इस्थादि कथानुकूल सामग्री उपलब्ध होती है
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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