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होते है।
मध्यम आदि कवि -
कतिपय कवि सौन्दर्य के लिए विशेष इच्छुक रहते है । कतिपय कवि अर्थ सौन्दर्य व समासयुक्त रचना की अभिलाषा करते है । किसी को कोमलकान्त पदावली, स्फुट प्रसाद गुण विशिष्ट रचना ही अभीष्ट होती है । अत महाकवित्व पद प्राप्ति के लिए कवि को सदा सावधान रहना चाहिए ।
शोध प्रबन्ध के कई प्रस्तुत अध्याय के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि आचार्य अजितसेन ने अपने पूर्ववर्ती आचार्यों की अपेक्षा कतिपय नवीन तथ्यों की भी उद्भावनाएँ की है । जिनका निर्देश इस प्रकार है -
काव्य स्वरूप के सम्बन्ध मे इन्होंने उत्तम कोटि के नायक के चरित्र चित्रण की चर्चा की है तथा काव्य को उभयलोक हितकारी तथा धर्म हेतुक बताया है । जबकि किसी पूर्ववर्ती आचार्य ने काव्य स्वरूप के सम्बन्ध मे इन तत्वों का उल्लेख नहीं किया ।
महाकाव्य के वर्ण्य विषयों का सविस्तार वर्णन जितना अलकार चिन्तामणि मे किया गया है उतना भामह, दण्डी, रुद्रट, मम्मट आदि किसी भी पूववर्ती आचार्य क. कृतियों में नहीं है ।
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कवि समय विषयक मान्यताऐ सर्वथा नवीन नहीं कही जा सकती है तथापि आचार्य राजशेखर कृत काव्यमीमासा मे प्रतिपादित कवि-समय विषयक पदार्थों का निर्देश अजितसेन ने अधिक किया है ।
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