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________________ कभी भी अन्य कवि के काव्य से सन्दर शब्द या अर्थ की छाया को ग्रहण नही करना चाहिए क्योंकि शब्दग्राही कवि को पश्यतोहर चोर कह कर उसकी निन्दा की गयी है ।' इनके पूर्ववर्ती आचार्य राजशेखर ने भी अर्थ हारक कवि की निन्दा की थी ।2 यद्यपि आचार्य राजशेखर पद हरण- पादहरण आदि को कवि के लिए क्षम्य बताया है । आचार्य अजितसेन ने । मे कवियों के शब्द और अर्थ के हरण को दोष नहीं बताया । किन्तु इसका आशय यह नहीं है कि समस्या पूर्ति के लिए कहीं से भी श्लोक लेकर समस्या पूर्ति कर दी जाय । कवि को चाहिए कि स्वरचित वाक्यों मे वह समस्या पूर्ति ही करे । यदि समस्या पूर्ति के समय प्रवाह मे किसी अन्य कवियों के काव्यों के शब्द या अर्थ का हरण हो भी जाय तो वह समस्या पूर्ति मे दूषण न होकर कवि की बहुज्ञता का परिचायक होने से कवि के सम्मान मे अभिवृद्धि करता है । महाकवि का स्वरूप-- आचार्य अजितसेन के अनुसार सभी प्रकार के रस एव भाव के सन्निवेश मे विशारद शब्द अर्थ के समस्त अगों का ज्ञाता तथा कवि-शिक्षा से पूर्ण परिचित कवि ही महाकवि के पद को अलकृत करता है अन्य कवि मध्यम कोटिक अन्यकाव्यसुशब्दार्थच्छाया नो रचयत्कवि । स्वकाव्ये सोऽन्यथालोके पश्यतोहरतामतेत् ।। अचि0 - 1/98 सोऽय कवेरकवित्वदायी सर्वथा प्रतिबिम्बकल्प परिहरणीय । काव्यमीमासा - अ0 12 काव्यमीमासा - अ0 ।। समस्यापूरप कुर्यात्परशब्दार्थगोचरम् । परभिप्रायवेदित्वान्न कविर्दोषमृच्छति ।। अचि0 - 1/99
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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