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गणों के देवता और उनका फल
मगण के देवता भूमि, नगण के स्वर्ग, भगण के जल, और मगण के देवता चन्द्रमा है । इन चारो गणों को मागलिक माना गया है । इनका काव्यारम्भ मे प्रयोग शुभकारक है । तगण के देवता आकाश, जगण के सूर्य, रगण के अग्नि
और सगण के देवता पवन है । ये चारों अशुभ है, अत काव्यारम्भ मे इनका प्रयोग वर्जित है । तगण को मध्यस्थ अर्थात् सामान्य माना गया है ।'
अमृतानन्दन योगी भी उक्त विचार से सहमत है ।2
काव्य के प्रारम्भ में स्वरवर्षों के प्रयोग का फल ----------------------------
काव्य के प्रारम्भ मे 'अ' या 'आ' के होने से अत्यन्त प्रसन्नता, इ या ई के होने से आनन्द, उ या ऊ के होने से धनलाभ, ऋ ऋ, ल ल के होने से अपयश एव ए, ऐ, ओ औ के रहने से कवि, नायक तथा पाठक को महान् सुख होता है ।
मोभूोंगौर्यभोवा शशधरयुगल मगलंतोऽशुभ ख- । जोरस्सोभासुरग्नि पवन इदमभद्र त्रय चादिकानाम् ।। मगणादीना भूरित्यादयोऽधिदेवता । बिन्दुसर्गा पदादौन कदाचन जो पुन ।। भषान्तावपि विद्येते काव्यादौ न कदाचन ।
अ०चि0-1/86-87 यो वारिरूपो धनकृद्रोऽग्निर्दाहभयकर । ऐश्वर्यदो नाभसस्तोभ सौम्य सुखदायक ।। ज सूर्यो, रोगद प्रोक्त सो वायण्य क्षयप्रद । शुभदो मो भूमिमयो नो गौधनकरो मत ।।
अलकारसग्रह - 1/33-34 आभ्या सप्रीतिरीभ्यामुद्भवेदूभ्या धन पुन । ऋल चतुष्टयतोऽकीतिरेच सौरठयकरा स्मृता ।।
अचि0 - 1/88