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पुलोम आदि दानव है और बल, वत्र, वृषपर्वा आदि असुर है । महाकवि बाणभट्ट ने कादम्बरी के मगलाचरण मे तीनों का एक ही रूप मे वर्णन किया है ।'
उपर्युक्त निरूपण से विदित होता है कि आचार्य राजशेखर ने पार्थिवकवि - समय का जाति, द्रव्य, क्रिया तथा गुण रूप में विभाजित कर इनके असत्, सत् तथा नियम के अनिबन्धन तथा निबन्धनादि का उल्लेख किया है परन्तु स्वर्ग पातालीय वर्ग मे वर्णित विषयों मे इस प्रकार का विभाजन नहीं किया गया । इस वर्ग मे केवल द्रव्यगत विषयों का ही प्राय उल्लेख है । इसका आशय यह है कि जाति, द्रव्य, क्रिया और गुण का निबन्धन पार्थिव पदार्थों के समान ही स्वर्गपातालीय पदार्थों में ही करना चाहिए ।
आचार्य राजशेखर के पश्चात् आचार्य अजितसेन ने कवि समय का वर्णन विस्तार से किया है । आचार्य राजशेखर ने जाति, द्रव्य, क्रिया एव गुण रूप पदार्थों को प्रथक करके उनके अनिबन्धन तथा निबन्धन की चर्चा की है । जबकि अजितसेन ने असत् के निबन्धन, सत के अनिबन्धन तथा नियम से होने वाले निबन्धन की चर्चा की है ।
असत् में सत् वर्णन सम्बन्धी कवि समय का उदाहरण.
सभी पर्वतों पर रत्नादि की उपलब्धि, छोटे-छोटे जलाशयों मे भी हसादि पक्षियों का वर्णन, जल मे तारकावली का प्रतिबिम्ब, आकाश गगा एव अन्य नदियों मे भी कमल आदि की उत्पत्ति का वर्णन लोक या शास्त्र मे देखा या सुना न जाने के कारण कवियों का असत निबन्ध - असत पदार्थों का वर्णन कहलाता
काव्यमीमासा पृष्ठ - 224, अध्याय - 16 कवीना समयस्त्रेधा निबन्धोऽप्यसतस्सत । अनिबन्धस्सजात्यादेनियमेन समासत ।।
अचि0 - 1/69
गिरी रत्नादि - हसादि - स्तोकपद्माकरादिषु । नीरेभाद्यखगंगाया जलजाद्य नदीष्वपि ।।
अ०चि0 - 1/70