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होती है ।' इन्होंने निम्नलिखित कारणों से होने वाली अर्थ प्रतति में व्यञ्जनावृत्ति को स्वीकार किया है2 .
सयोग, अर्थविरोधिता, प्रकरण, विप्रयोग, औचित्य, सामर्थ्य, स्वर, साहचर्य, अन्य शब्दसान्निध्य, व्यक्ति, देश, लिंग, काल और कवियों की चेष्टा इत्यादि अर्थविशेष के कारण होते हैं । इनके उदाहरण इस प्रकार है -
'वज्रयुक्त हरि' - इस वाक्य मे वज्र के सयोग से हरि शब्द इन्द्र का वाचक है । स्याद्वाद मे वह जिनसेव्य है, यहाँ जिनका अर्थ अर्हन् है ।
'पद्मविरोधी हरि -' इस वाक्य में पद्मविरोधी होने के कारण हरि का अर्थ चन्द्रमा है । 'दव मां वैत' - इस वाक्य में प्रकरणवश 'माँ' से सत्यवादिता का बोध होता है । 'अपवि हरि' - इस वाक्य में अस्त्रयोग न रहने से कृष्ण की प्रतीति होती है । 'स जिन व अव्यात' - इस वाक्य मे औचित्य के कारण सम्मुखता का बोध होता है । 'कोकिलो मधौ ति' - इस वाक्य मे मधु अर्थ का सामर्थ्य के कारण बसन्त माना जाता है । वेद में जिस प्रकार स्वर के कारण अर्थ बदल जाता है उस प्रकार काव्य में अर्थ परेवर्तन नहीं होता ऐसा कतिपय कुविचारवों का मत है । 'सीरिमाधवयो.' - इस वाक्य मे सीरि के साहचर्य से माधव कृष्ण का द्योतक हुआ ।
'सज्योत्स्न राजा' - इस वाक्य में 'सज्योत्स्न.' के सान्निध्य से राजा शब्द चन्द्रमा का बोध कराता है । 'अभान् मित्रम्' - इस वाक्य में व्यक्ति के कारण 'मित्रम्' का सुहृद् अर्थ है तथा 'अभान् मित्र' ऐसा कहने पर मित्र का अर्था सूर्यमण्डल होता है । 'अत्र देवो भाति' - इस वाक्य के कहने पर देश के कारण देव शब्द राजा का बोधक है । 'अंगज. मीनकेतु. स्यात्' इस वाक्य में पुल्लिंग निर्देश के कारण अंगज शब्द कामदेव का बोधक है ।
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सयोगादिभिरनेकार्थवाचक शब्दोऽभिधामल अवाच्यं व्यनक्तीति व्यञ्जना विशेष उच्यते । अचि0, पृ0 - 276 . संयोगार्थविरोधिते प्रकरणंस्यात् विप्रयोगौचिती सामर्थ्य स्वरसाहचर्यपरशब्दाभ्यर्णताव्यक्तय. । देशो लिंगमतोऽपि कालइह चेष्टाद्या. कवीनांमता शब्दार्थेवनवच्छिद्रे स्फुटविशेषस्य स्मृतेर्हतव ।। अ०चि0, 5/179 अ०चि0 5/80 से 88 तक, पृ0 - 277-78