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इन्होंने आरभटी और कैशिकी की मध्यमा नामक वृत्ति को सभी रसों में स्वीकार किया है ।।
भरतमुनि, धनञ्जय ने इस वृत्तियों के वर्णन में यह स्पष्ट निर्देश दिया है कि श्रृंगार रस मे कैशिकी, वीर मे सास्वती, रौद्र व वीभत्स मे आरभटी तथा अन्यशेष रसों में भारती वृत्ति होती है ।2
व्यंग्यार्थ के स्फुटता तथा अस्फुटता के आधार पर काव्य भेद निरूपण -
आचार्य अजितसेन ने व्यंग्यार्थ के अप्रधान ओर अस्पष्ट रहने के कारण काव्य के क्रमश मध्यम उत्तम और जघन्य इन तीन भेदों का उल्लेख किया । इन्होंने व्यंग्यार्थ के मुख्य न होने पर मध्यम या गुणीभूत व्यंग्य काव्य, तथा व्यग्यार्थ के मुख्य रहने पर उत्तम या ध्वनि काव्य और व्यग्यार्थ के अस्पष्ट रहने पर अधम या चित्रकाव्य का निरूपण किया है । इनके विवेचन पर पूर्ववर्ती आचार्यों आनन्दवर्धन तथा मम्मट का स्पष्ट प्रभाव है किन्तु इन्होंने मध्यम, उत्तम तथा जघन्य क्रम से काव्य भेदों का उल्लेख किया है जबकि आनन्दवर्धन तथा मम्मट ने उत्तम मध्यम तथा अधम य अवर के क्रम से उल्लेख किया है । आचार्य अजितसेन ने चित्रकाव्य को तीन भागों में विभाजित किया है - शब्द चित्र, अर्थचित्र तथा शब्दार्थोभय चित्र । आचार्य मम्मट ने शब्दार्थोंभय चित्र का उल्लेख नहीं किया।
चित्रकाव्य के निरूपण के पश्चात् इन्होंने अभिधामूला व्यञ्जना के स्वरूप का उल्लेख किया है । इनके अनुसार जहाँ संयोगादि के कारण अनेकार्थक वाचक भिषामूलक शब्द अवाच्यार्थ को व्यक्त करता है वहाँ व्यञ्जना वृत्ति
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वही 5/168
क) नाOशा0 23/65-66 खो द0रू0, 162 गौणागौणास्फुटत्वेभ्यो वयग्यार्थस्य निगद्यते । काव्यस्य तु विशेषोऽयं त्रेधामध्योवरोऽघर ।। वही, वृत्ति पृ0 - 274 क ध्वन्याo, 3/42, 43 की वृत्त । ख का0प्र0 प्रथम उल्लास । चित्र शब्दार्थोभयभेदेन त्रिधा ।
अचि0 5/172
अचि०, पृ0 - 275