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सादृश्य हेतु का लक्षणा के भी - सारोपा तथा साध्यवसाना दो भेद होते हैं । जहाँ विषय और विषयी दोन के अभेद का निरूपण हो वहाँ सारोपा लक्षणा होती है तथा जहाँ विषयी के द्वारा विषय का निगरण कर लिया जाए वहाँ साध्यवसान लक्षण होती है । आचार्य अजितसेन कृत लक्षणा स्वरूप तथा भेद मम्मट से प्रभावित है2 किन्तु इन्होंने गोणी लक्षणा का पृथक् निरूपण नहीं किया अत गोडीसारोपा तथा साध्यक्साना - दो भेद छूट जाते हैं । इस प्रकार अजितसेन के अनुसार लक्षणा के चार भेद निश्चित हए ।
अभिधा शक्ति.
आचार्य अजितसेन के अनुसार सकेतित अर्थ को बोध कराने वाली शब्द व्यापृति को अभिधा कहा गया है ।
आचार्य मम्मट ने भी सकेतितार्थ में अभिधा शक्ति को स्वीकार किया है। किन्तु मम्मट कृत विवेचन अत्यन्त प्रौढ तथा गम्भीर है । आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ रूढार्थ, योगार्थ तथा रूढयोगार्थ की प्रतीति हो वहाँ अभिधा शक्ति होती है क्योंकि इन्होंने रूढ , यौगिक और योग रूढ रूप से तीन प्रकार के शब्दों का उल्लेख किया है । रूढ शब्द को निर्योग, अस्फुट योग और योगाभास के भेद से तीन प्रकार का स्वीकार किया गया है । जिसमे यौगिक अर्थ की प्रतीति न हो वह निर्योन रूढ है, जैसे भू इत्यादि तथा जिसमें यौगिक अर्थ की अस्पष्ट प्रतीति न हो वह अस्फुट योग है, जैसे वृक्ष इत्यादि और जिसमें वस्तुत यौगिक शब्द की प्रतीति न होने पर भी यौगिक शब्द के समान प्रतीति हो, उसे योगाभास के अन्तर्गत स्वीकार किया गया है जैसे मण्डप इत्यादि ।
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वाच्यार्थघटनेन तत्संबन्धिनि समारोपितशब्दव्यापारो लक्षणा । सा द्विधा सादृश्यहेतुका संवन्धान्तहे तुका चेति । सम्बन्धान्तहेतकापि द्विधा जहद्वाच्या अजहद्वाच्या चेति सादृश्यहेतुका द्विधा । सारोपा साध्यक्साना चेति । एवं लक्षणा चतुर्धा । का0प्र0, द्वितीय उल्लास । संकेतितार्थविषया शब्दण्यापृतिरभिधा । का0प्र0, द्वितीय उल्लास, सू० - 5 रूढयौगिकमिश्रेभ्यो भेदभ्यं सत्रिधा पुन । अ०चि0 1/46, उत्तरार्ध का अचि०, पृ0 - 263-64 ख वही, 5/147