________________
मम्मट के अनुसार वाच्य वाचक भाव के बिना ही किसी वस्तु का कथन करना पर्यायोक्त है । इसमे व्यग्य के स्थान पर उक्ति वैचित्र्य ही प्रधान होती है 12
प्रतीप
आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ प्रस्तुत कार्य के वर्णन से प्रस्तुत कारण की प्रतीति हो, वहाँ पर्यायोक्त अलकार होता है । व्यग्य रूप से विवक्षित अर्थ का वाच्य रूप मे प्रतिपादन पर्यायोक्त का प्राण है 13 इस प्रतिपादन के प्रकार अनेक हो सकते है । अत एव प्रस्तुत कार्य से प्रस्तुत कारण की प्रतीति मात्र मे इसे परिसीमित कर देना उचित नहीं प्रतीत होता । प्रस्तुत कार्य से प्रस्तुत कारण के बोध वर्णन मे रूय्यक, विद्यानाथ विश्वनाथ इस अलकार की स्थिति स्वीकार करते 14
1
आचार्य रुद्रट के अनुसार जहाँ उपमेय की अधिकता का प्रतिपादन समता दिखाकर उसकी प्रशसा या निन्दा की जाए वहाँ प्रतीप अलकार होता है। 5 परवती काल में उपमान की प्रशसा में प्रतीप अलकार की स्थिति को मान्यता नहीं
2
:: 192 ::
3
उद्भट कृत परिभाषा भामह से अनुकृत है । '
आचार्य वामन, रुद्रट व कुन्तक इस विषय मे मौन है ।
4
5
काव्या०स०स०, 4/6
पर्यायोक्त बिना वाच्यवाचकत्वेन यद्वच 1 का0प्र0, 10/115 वाच्यवाचकभावव्यतिरिक्तेनावगमनव्यापारेण यत्प्रतिपादन तत्पययिण भगयन्तरेण
कथनात्पर्यायोक्तम् ।
वृत्ति
प्रस्तुतस्यैव कार्यस्य वर्णनात् प्रस्तुतपुन । कारण यत्र गम्येत् पर्यायोक्त मत यथा ।।
141-42
(क) अलकारसर्वस्व ०
(ख) प्रताप० पृ० - 541
(ग) पर्यायोक्त यदा भगया गम्यमेवाभिधीयते ।।
रूद्र० काव्या०, 8/70
-
अ०चि०
4/265
सा0द0 10/60