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आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ भविष्य में कथन किए जाने वाले विषयों का अथवा कथित विषयों का विशेष ज्ञान कराने के लिए निषेधाभास सा कथन किया जाए वहाँ आक्षेप अलंकार होता है । इन्होंने आक्षेप अलकार को चार भागों में विभाजित किया है -
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कथित विषय में वस्तु का निषेध कथन का निषेध वक्ष्यमाण विषय मे सामान्य प्रतिज्ञा का विशेष निषेध एक अंश के रहने पर दूसरे अंश का निषेध
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इनके पूर्ववर्ती आचार्य मम्मट ने भी दो भेदों का उल्लेख किया है2
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वक्ष्यमाण विषयक तथा उक्त विषयक ।
परवर्ती काल में विद्यानाथ तथा विश्वनाथ ने अजितसेन के आधार पर चार भेदों का उल्लेख किया ।
पर्यायोक्तः
सर्वप्रथम इस अलंकार का निरूपण आचार्य भामह ने किया । इनके अनुसार जहाँ विवक्षितार्थ का कथन प्रकारान्तर से किया जाए वहाँ पर्यायोक्त अलंकार होता है 14
आचार्य दण्डी ने इसे अधिक स्पष्ट किया है उनके मत में - जब इष्टार्थ का कथन किए बिना उसी अर्थ की सिद्धि हेतु प्रकारान्तर से कथन किया जाए तो पर्यायोक्त अलंकार होता है ।
अचि0 4/247 एव वृत्ति का0प्र0, 10/106 का प्रताप0 पृ0 - 531 खा सा0द0, 10/85 पर्यायोक्तं यदन्येन प्रकारेणाभिधीयते । का0द0, 2/225
काव्याo, 3/38