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होते है । दृष्टान्त मे बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव होता है, पर प्रतिवस्तूपमा मे वस्तुप्रतिवस्तुभाव । दृष्टान्त मे दो साधर्म्य रहते है, जिन्हें भिन्न-भिन्न शब्दों द्वारा कहा जाता है, प्रतिवस्तूपमा मे साधर्म्य एक ही रहता है, केवल दो भिन्न शब्दों द्वारा उनका कथन भर किया जाता है । ।
दीपक और तुल्ययोगिता में परस्पर अन्तर:
समस्त
दीपक और तुल्ययोगिता मे अप्रस्तुत और प्रस्तुत के क्रमश और व्यस्त होने के कारण परस्पर भेद है । आशय यह है कि दोनों सादृश्यगर्भ गम्यौपम्याश्रयमूलक वर्ग के पदार्थगत अर्थालंकार है । दोनों मे एक धर्माभिसम्बन्ध होता है । दोनों सादृश्य, साधर्म्य पद्धति द्वारा निर्दिष्ट होते है । दोनों मे कथन एक वाक्यगत होता है, पर दीपक मे जहाँ प्रस्तुताप्रस्तुत का एक धर्माभिसम्बन्ध होता है, वहाँ तुल्ययोगिता मे केवल प्रस्तुत का अथवा केवल अप्रस्तुत का 12
उत्प्रेक्षा और उपमा में अन्तर -
उत्प्रेक्षा और उपमा मे क्रमश उपमान की अप्रसिद्ध और प्रसिद्धि के कारण भिन्नता है । तात्पर्य यह है कि ये दोनों ही साधर्म्यमूलक अर्थालंकार है, पर उपमा है भेदाभेदतुल्यप्रधान और उत्प्रेक्षा अभेद प्रधान अध्यवसायमूलक है । उपमा मे उपमेय और उपमान मे साम्यप्रतिपादन किया जाता है और उत्प्रेक्षा मे उपमेय मे उपमान की सम्भावना की जाती है । उपमा मे साम्यभाव निश्चित है पर उत्प्रेक्षा मे अनिश्चित । 3
उपमा और श्लेष में अन्तर :
उपमा और श्लेष अर्थसाम्य के कारण भिन्न है । क्योंकि श्लेष म शब्दसाम्य होता है 4
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प्रतिवस्तूपमादृष्टान्तौ वस्तुप्रतिवस्तुबिम्बप्रतिबिम्बभावद्वयेन भिद्येते ।
अचि० पृ० 115
दीपक तुल्ययोगितयोर प्रस्तुतप्रस्तुताना समस्तत्व - व्यस्तत्वाभ्या भेद ।
अ०चि० पृ०
उत्प्रेक्षोपमयोरूपमानस्याप्रसिद्ध प्रसिद्धत्वाभ्या भेद ।
उपमाश्लेषी अर्थसाम्येन च भिद्यते ।
अचि० पृ०
वही
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पृ0 - 116