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भ्रान्तिमान अपह्नति और सन्देह में अन्तरः
भ्रान्तिमान, अपह्नव और सन्देहालकारों मे आरोप विषय की भ्रान्ति, असत्य कथन एव सन्देह के कारण परस्पर भेद है । उक्त तीनों ही सादृश्य गर्भ अभेद प्रधान आरोपमूलक अर्थालकार है । भ्रान्तिमान् से मिथ्यात्व सादृश्य पर आधारित होता है और सन्देह मे मिथ्यात्व की सशयावस्था सादृश्य मे स्वय उत्पन्न होती है । भ्रान्तिमान् के मूल मे भ्रान्ति है और सन्देह के मूल में सशय। अपह्नति मे प्रकृत - प्रत्यक्ष को निषेधवाचक शब्दों द्वारा छिपाया जाता है एव उसमे अपकृत का चमत्कारवेष्टित आरोप या स्थापन किया जाता है ।'
उपमा, अनन्वय और उपमेयोपमा मे भेद -
उपमा, अनन्वय और उपमेयोपमा नामक अलकारों मे साधर्म्य के वाच्य होने के कारण यद्यपि सादृश्यमूलकता है तो भी तुल्ययोगिता, निदर्शना, दृष्टान्त, व्यतिरेक और दीपकालकारों मे सादृश्य के प्रतीयमान होने के कारण भिन्नता
उपमेयोपमा और प्रतिवस्तूपमा मे अन्तर -
उपमेयोपमा और प्रतिवस्तूपमा अलकारों मे साधारण धर्म के क्रमश वाच्य और प्रतीयमान होने के कारण भेद है ।
प्रतिवस्तूपमा और दृष्टान्त में परस्पर भेद.
प्रतिवस्तूपमा मे वस्तु तथा प्रतिवस्तु का बिम्बभाव और दृष्टान्त अलकार मे वस्तु-प्रतिवस्तु का प्रतिबिम्ब भाव रहता है । अत दोनों अलंकारों मे परस्पर अन्तर है । आशय यह है कि दोनों ही सादृश्य गर्भ गम्यौपम्याश्रयमूलक वर्ग के वाक्यार्थगत अर्थालकार है । दोनों के उपमेय - वाक्य और उपमान - वाक्य निरपेक्ष
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भ्रान्तिमदपनवसदहानामारोपविषयस्य भ्रान्त्य पलापसशये भेद ।
___ अचि० पृ0 - ।।5 उपमानन्वयोपमेयोपमा साधर्म्यस्य वाच्यत्वात् सादृश्यमूलत्वोऽपि तुल्ययोगितानिदर्शनदृष्टान्तव्यतिरेकदीपकेभ्यो भिन्ना ।
अचि0 पृष्ठ - 115 उपमेयोपमाप्रतिवस्तूपमयो साधारणधर्मस्य वाच्यत्वप्रतीयमानत्वाभ्यां भेद ।
अचि० पृ0 - 115