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उन्होंने उपमा रूपक तथा दीपक के साथ यमक का भी उल्लेख किया है तथा उसके निम्नलिखित दस भेदों का निरूपण भी किया है ।' पादान्त यमक, 2 काञ्ची यमक, 3५ समुद्गय मक 14विक्रान्त यमक, 5५ चक्रवाल यमक, ५6) सदष्ट यमक, 7 पादादे यमक, 8 आमेडित यमक, 9j चतुर्व्यवसित यमक तथा Jio माला यमक ।
_ विष्णुधर्मोत्तर पुराण ने समानुपूर्वक भिन्नार्थक शब्दों की आवृत्ति को यमक के रूप में स्वीकार किया है तथा पाद के आदि, मध्य एव अन्त मे पदों की आवृत्ति का उल्लेख करते हुए सदष्टक और समदग-दो भेद का उल्लेख किया है । समस्तपाद यमक को दुष्कर कहा है ।
अग्निपुराण मे भिन्नार्थ प्रतिपादक अनेक वर्णो. की आवृत्ति को यमक के रूप में मान्यता प्रदान की गयी है साथ ही साथ आवृत्ति के साव्यपेत व्यवधान से युक्त एव अव्यपेत व्यवधान से रहेता दो भेदों का उल्लेख भी किया है। अग्नि पुराण मे भी नाट्यशास्त्र की भाँति दस भेदों का उल्लेख किया गया है ।
आचार्य दण्डी के अनुसार जहाँ वर्ण, सघात का अव्यवधान से या व्यवधान से पुन -पुन उच्चारण हो वहाँ यमक अलकार होता है । दण्डी कृत लक्षण मे साव्यपेत एव अन्यपेत वर्णो, की आवृत्ति की चर्चा तो अग्नपुराण मे प्रतिपादित लक्षणों से तुलित है परन्तु जहाँ अग्निपुराण मे अनेक वर्षा की भिन्नार्थक आवृत्ति मे यमक अलकार को स्वीकार किया गया है वहाँ दण्डी इसकी कोई चर्चा ही नहीं करते है । किन्तु इसके भेद-प्रभेदाद का निरूपण नाट्यशास्त्र तथा आग्नपुराण से भी अधिक है । इन्होंने यमक के 315 भेदों का उल्लेख किया है ।
ना०शा0 17/63-65 शब्दा समानुपूर्व्यापाठ्यान्तरसमानाभिन्नार्थीयमक कीर्तेत पुन । सस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास - पी0वी0 काणे, पृ0 - 89 अग्नि पु0अ0 343 काव्यादर्श 3/1 काव्यादर्श 3/2-60