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श, ष, हल, ह्व, त्य से युक्त व्यञ्जनों का समावेश भी रहता है समानरूप वाले वर्ण, जहाँ सयुक्त हो तथा प्रत्येक वर्ग के अन्तिम वर्ण स्पर्श व्यञ्जन से युक्त हो वहाँ उपनागरिका वृत्ति को स्वीकार किया है । परुषा तथा उपनागरिका मे प्रतिपादित वर्णों से भिन्न जहाँ स्पर्श कोमल व्पज्जन की स्थिति हो वहाँ ग्राम्या वृत्ति होती है। 2
आचार्य मम्मट ने माधुर्य
व्यञ्जक वर्णों से उपलक्षित वृत्ति को उपनागरिका ओज गुणों के प्रकाशक वर्णों से युक्त वृत्ति को परुषा' कहा दे । ओज प्रकाशक वर्णों से युक्त वृत्ति को अन्य आचार्यों ने कोमला भी कहा है । किसी के मत मे यह पाञ्चाली वृत्ति भी है । इस कोमलावृत्ति को ही आचार्य उद्भट आदि
अतिशय कान्ति के अभाव के कारण ग्रम्य स्त्री से साम्यता प्रतिपादित करते हुए इसे ग्राम्या की अभिधा प्रदान की है किन्तु निष्णात बुद्धि वाले विद्वान इस ग्राम्या की भूरि भूरि प्रशंसा करते है । उक्त वृत्तियों से उपलक्षित अनुप्रास को वृत्यनुप्रास कहा गया है। 5 आचार्य मम्मट के अनुसार एक व्यञ्जन अथवा अनेक व्यञ्जन को दो बार अथवा अनेक बार सादृश्य होने पर वृत्यनुप्रास होता है 10 रुय्यक, शोभाकर मित्र तथा विश्वनाथ कृत परिभाषा मम्मट से प्रभावित है ।
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अलकारसार संग्रह
go - 257
काव्यालकार सा०स० प्रथम वर्ग, पृष्ठ
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का०प्र० सूत्र 108
वही सूत्र 109
बा०बो0 नवम् उल्लास, पृष्ठ
क) अन्यथा तु वृत्यनुप्रास
(ख) अलकार रत्नाकर
ग) सा0द010/4
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एकस्याप्यसकृत्पर ।
एकस्य अपिशब्दादनेकस्य व्यञ्जनस्य वृत्यनुप्रास ।
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द्विकृत्वो
का०प्र० सूत्र 107 एव वृत्ति
अ०स० सूत्र 5
सूत्र 4 सय्यक अनुकृत
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वा सादृश्य