________________
चित्रकाव्य को प्रहेलिका के रूप मे निरूपित करने का श्रेय सर्वप्रथम अग्निपुराणकार को जाता है इन्होंने सात प्रकार की प्रहेलिकाओं का उल्लेक्ष किया है - 10 प्रश्न, 12 प्रहेलिका 3 गुप्त, 14 चुताक्षर, 5 दत्ताक्षर, 60 च्युतदत्ताक्षर तथा 17 समस्या।
समस्या प्रहेलिका के तीन भेद किए गये है - नियम, विदर्भ तथा बन्ध । नियम को स्थान, स्वर तथा व्यञ्जन रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है - प्रतिलोम्य तथा आनुलोम्य रचना को विदर्भ की कोटि मे स्वीकार किया है तथ गेमूका अर्धभ्रमण सर्वतोभद्र, मुरजबन्धदि प्रसिद्ध वस्तुओं के आधार पर की जाने वाली लोक रचना को क्न्ध के रूप निरूपित किया है ।' अग्निपुराण के अनन्तर आचर्य अजित्सेन ने भी विविध प्रकार के बन्धे को प्रहेलिका के रूप मे स्थान देकर उसके महत्व की अभिवृद्धि की । यद्यपि अजितसेन कृत परिभाषा पर यत्र-स्त्र अपने पूर्ववर्ती आचायाँ एव अग्निपराप का प्रभाव परिलक्षित होता है । तथापि इनके द्वारा निरूपित भेदों में नगण्यता तथा अधिक्य का आधान हुआ है । सम्पूर्ण द्वितीय परिच्छेद में इन्होंने केवल चित्र काव्यों का ही निरूपण किया है जो इनके वैद्ष्य का परिचायक है।
अग्निपुराप - अ0 343 पृ0 498