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APPENDIX II.
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पतालाल मेरी वडा सकुचा रसना कहै फीके ॥ राज गुरामैलि ढोरऊ मार प्रभच्छ ये मास औ गाहक जी के |
End. - मास जितेक कहें जु पुनोत सुघेाइये सुंदर वारहि ल्याइ कै ॥ मंगलो नान दही जुत के व्रत वह्नि पे घात के भाजन नाइ कै ॥ पला लवंग धना मिरचै तज पत्र वांटि मिलावै बनाइ कै । देवन पित्रन अर्पि के बाइ मिलै सव जग्यन के फल धाइ कै ॥ १० ॥ चैापद पंछी मोन सुभ भच्छक जिते जहांन ॥ सुर मुनि रिष पित्र नरन क भाषै तिते पुरान ॥ भावे तितै पुरान संहिता और उपनषद ॥ वेद स्मृति परिवान तंत्र यामल डामर वद । पावन पुन्य पहार नसावन पापन प्रौगद || जे नहिं करै प्रमान जानियेां ते नर चापद ॥ ११ ॥ इति मांस दसक अवधूत सिंघ कत संपू ॥ मार्ग सुदि ११ सुक संवत १८४४ ॥
Subject. -- मांस की प्रशंसा और महिमा |
No. 11 (c). Sadasiva Pañjara by Avadhūta Simha Sube stance-Country-made paper. Leaves-7. Size - 7 x 42 inches. Lines per page-10. Extent-43 Slōkas. Appearanceold. Character - Nagari. Date of composition – Samvat 1844. Date of manuscript - Samvat 1844. Place of Deposit - Śrí Devaki Nandanācharya Pustakālaya, Kāmavana (Bharatapur ).
Beginning.—श्री गणेशाय नमः ॥ कातिल जहर है किये तस वीस को महाभोसि महताव || भौवलसै सि समदोद सिरवाला माया में हमेसा सीरी गंग ग्राव सेर पास्तन सीतन बाक जाहिर जहान नूर बेसुमार आफताब | की सुबंदगो किये से दंत करिके वुलगी अजीम नाम अलकाव ॥
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End. -सिफुत किये से देव करामात गंज करै षिजमत पुसी से जहगीर . बालसन का ॥ दिल को गहरी दृरि करि दिल दीदों देवै करता तिसो की हमी दादा जहान का। बंदगी दराज से दराज करे आलम में पाव वासी किये करै मालिक निसांन का ॥ तरक हुनी करि निजद अजोजो सैा रहे हेावै महबूब सो जिमीन आसमान का ॥ ४ ॥ देबे घुसी है पलासी कै रंज से वंदगी वाला सैन्यात खूब है || दक देवे जिसे चसमा से करै तिसे बालम में महबूब है ॥
दहे का ते सवारी गाव प्रजीज रहे तन पाक अजूब है ॥ पैसा सुनीदै न दीदै दिलदार दान जहांन अजायब रूव है ॥ ५ ॥ इति ग्रवधूत सिंघ क्रत सदा सिव पंजर समाप्तं ॥ सुभमस्तु पाष वदि १ भौम संवत १८४४ लिपतं अवधूत सिंघ टीका मऊ ग्रामे ॥
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Subject. सदाशिव स्तोत्र ।
गले के दरम्यान
प्रषिर कयामत
सोम कोहषानै ध्वाहिस जु वंदे