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APPENDIX III.
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603 पिता भ्रात बिरादर जात । संग जाव काई नहीं देखत हैं दिन रात ॥ करे नहीं परलोक में तेरो कोऊ सहाय । पाप करे क्या मोह बश क्या इनसे भय खाय । त्यागन जब तन हू पड़े इनकी कहा चलाय । धर्म कर्म ही अंत में संग तुम्हारे जाय॥ वेद शास्त्र सिद्धान्त है करना पर उपकार । मिन समाज सबको समझ यही उचित व्यवहार ॥ इस कारण सबसे करो प्रीति धर्म अनुसार । हानि पराई छल कपट झूठ अधर्म विसार ॥ ___Subject. विविध कवियों द्वारा लिखित होलियों आदि का नाम रहित संग्रह।