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________________ 456 APPENDIX III. -- फागुन वदि १२ मुनि सुव्रत मोक्षं १४ वैसाष वदि १४ नमिनाथ निर्वाण ६ सावण सुदि ६ नेमनाथ निर्वाण ७ सावण सुदि ७ पार्श्वनाथ मोक्षं १४ कातिक वदि १४ महावीर मोक्षं गतः इति निर्वाण कल्याणकं इति पंच कल्याणवत संपूर्ण लिषतं पंडित सेवाराम तिलोक पुर मध्ये सं० १८२५ पुस वदि ६ गुरुदिने । Subject.-जैनमतावलम्बियों के २४ गुरुनों के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण काल की तिथ्यात्मक सूची॥ No. 55. Pañcha Mudrā. Substance-Country-made paper. Leaves-58. Size-51 x 4 inches. Lines per page--12. Extent-696 Slokas. Appearance-Old. Character---Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1906 or A. D. 1849. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshamana Kota, Ayodhya. ___Beginning.-श्री गणेशाये नमः॥ मत्य नाम अजर अचिंत सर्वाकार महापुर्स अविचल अविनासो निर्गुन पूर्सयं नमः जोग जीत नाम गुरु पुरातम पुर्म निर्गन अंस औतार सुमुम वेद वानी किन गुरु सिष्य संवाद ग्रंथ पंचमुद्रा लिष्यते । सुकत उवाच । चा० । सुकत कहै सुनै गुर ग्यानो अगम भेद तुम कहै। वषानो सवै सृष्टि की उतपति भाष मोसा गाइ कछु जनि राी ब्रह्म जोव कैसै उतपानी तवन भे(द) गुर कही वषानो मुक्तिभेद गुर देहु बताई ताते हंस लोक को जाई। जागजीत उवाच । जोगजीत तब बोले बानी सुकित सुना आदि सहिदानी जाको मर्म न जानै कोई तुम से। भाषि कहै। मै साई उतपति के सव भेद बताउ अगम निगम सव तुम्है लषाउ । दाहा । ग्यान पंचमुद्रा कहै। मूल जोग को सार रिषि मुनि देव(न) को मता ताते अगम अपार १ चौ० अथ पंचमुद्रा विष्यान-प्रथमै मुद्रा पेचरी कहिऐ सा असथान गगन मो लहिए धूर्म वरन तह लषा प्रकासा चैतन्य ब्रह्म को तामे वासा __End.-नेत्र प्रस्थान कहिऐ अगा(च)रो कहा जु श्रवन सुरति सब्द प्रना. हद भवर गुफा मध्य गरजतु है नाना प्रकार की अनंत धुनि होती हैं ता धुनी मध्य अनंत धुनि को प्रकास होत है तामे जोगेस्वर मन लीन करि जातिमय होत है प्रभु पद प्राप्ति भयो ताते अगोचरी कहिए । श्रवन स्थान है उनमुनो कहा जु यह मन उर्ध उन्मान सा लय करै उनमान सौ जो रहै उर्ध चढी रहै कबहु उतरै नहीं निर्भय अमृत पान करत रहै छको रहै उनमान सा लीन अछै सुष प्राप्त पंदह सा उनमुनि प्रस्थान दुसरो द्वार ईति पंचमुद्रा पतंजली साल वचन प्रमान समाप्त वैसाष वदी १ सन १२५६ साल मु० तुलसीपुर । ____Subject.-ज्ञान-प्रध्यात्म । पातञ्जलयोगशास्त्रान्तर्गत पञ्चमुद्रा का निरूपण। जीव, ब्रह्म, सगुण, निर्गण, अमरलोक आदि विषयों का प्रतिपादन पातंजल योगदर्शन के अनुसार।
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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