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APPENDIX II.
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राग भैरव ॥ काहे न चेतन चरन मुरार ॥ रे सठ अधम लाज नहि ताहि मूरख मंद गंवार ॥ निशिवासर मुख सावत खावत सेवत मिथ्याचार ॥ आयु गंवाय भयो सठ रोते बोते जग व्योहार ॥ जो कछ करन रह्यो सा न कीन्हो दीन्हा सर्व संहार ॥ अब कहा साचत बार विमोचत खेाजत हित संसार ॥ सहज दयाल दांस हितकारी सुंदर नंद कुमार ॥ मन चित लाय चरन गहा तिनके होयहै पतित उवार ॥२॥ ____End.-भैरव ॥ श्री जमुना जमत्रास नसावनी ॥ श्री नंदलाल प्रिया अति प्यारो वारी विमल साहावनी ॥ बंदत चरन सदा मब काह सुर नर मुन मन भावनी ॥ दायक पद निवान दास को निज प्रति प्रीति बढ़ावनी ॥ रानिन में महरानि विराजत लाजत अवि कवि गावनी ॥ विहरत संग मुरारि मुदित मन आनंद घन उपजावनो ॥ महिमा अमित कहे काहा काई सभन सेाच दुष दाष दहावनी ॥ हारत सभ सरनागत मागत पातक पतित बहावनी ॥ इति श्री विनय वाटिका संपूर्ण ॥ संवत् १८८६ ॥ मंगलं भगवान विष्णु मंगल गरुडध्वजः ॥ मंगलं पडरीकाक्षो मंगलाय तनो हरिः॥ १ ॥ मंगलं लेखकानांच पाठकानांच मंगलं ॥ मंगलं सर्व लोकानां भू भूपति मंगलम ॥२॥ श्री कृष्णाय नमः ॥ निम्वितं कृष्णदास वैष्णवेन ॥ महाबनवासिना ॥ कील मध्ये ॥ नाम्ना युगन प्रसादति कायस्था हरि सम्मतः ॥ तेन कृता महावाणी विनयानां वाटिका च सा ॥१॥ श्रीरस्तु॥
Subject -भक्ति और ज्ञान के पद ।