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________________ APPENDIX II. 385 स्वाय ॥ सेऊ चंद्रप्रभ जिन स्वामी पुष्कदंत पुजू सुखदाय ॥ सीनल वंदो श्रीय हांस जिन प्रणमुं बास पुज्य सिर नाय ॥ विमल नाथ पण अनंत जिन धर्मनाथ सब कुं सुषदानी ॥ शांतिन सुं फिरे कुंथ जिनेश्वर परहन में मल्लि गुण षांनो ॥ मुनि सुबत नमू नाम इश्वर नेमनाथ पार सहित ठांनो ॥ वर्द्धमान प्रादिक चाबी सु बंदु मंगलदासुर प्रांनो ॥ ३ ॥ दाहा ॥ इंन प्रतिमय जुत देव ज्या सुरग सुकति सुखदाय ॥ तिन अतिसय के नाम अब सुनै भविक मत ल्याय ॥ चौपई ॥ तनय सेव मल तन मै नांही ॥ संसथान सम चतुर कहांहि ॥ संहनन वज्र वृष भनाराच ॥ काय सुगंध मधुर जिन बाच ॥ ५॥ माहा रूप लछिन मुभ जांनि ॥ रुद्र सुंपेद अनत बल मांनि ॥ प दश जनमत जिनकै हाय से भगवंत और नाहो काय ॥ ६ ॥ End.-पडो छंद ॥ जो संम्यक कथा मुनै अनूप ॥ सा जाने देव धरम सरूप ॥ इत्यादिक सब धर्म अंग जानि ॥ तातै सिव सुर मुष होय प्रांनि ॥ ४॥ दोहा ॥ यह पुन्याश्रव ग्रंथ जो मुनै पढ़ मन ल्याय ॥ सा जोय पुण्य संग्रह को पूरव पाप नमाय ॥४१॥ साहि पुरा शुभ थान मै ॥ भलो सहारा पाय ॥ धर्म लीयो जिन देव को ॥ नरभव सफन कराय ॥५०॥ नृप उमेद ता पुर विपे करे राज बलवान ॥ तिन अपने भुजबल थको अरि मिर कोन्हो पनि ॥ ५१ ॥ ताके राज सुराज मै इति भोति नहीं जांनि ॥ अब भू पुर मैं मूष थको ॥ तिष्ठै हरष जु प्रांनि ॥ ५२ ॥ करी कथा इस ग्रंथ को छद बंत्र पुर मांहि ॥ ग्रंथ करन कछु बीचि मै आकुन उपजी नांहि ॥ ५३॥ साहि नगर साह्म भयो ॥ पायो शुभ अवकास ॥ पूरन ग्रंथ सूषे ते कोयो ॥ पुंग्याश्रव पुंग्यबास ॥ ५५ ॥ चौपई ॥ संवत अष्टादस सत जांनि उपरि बोस दाय फिरि प्रांनि ॥ फागन सूदि ग्यारसि निस मांहि ॥ कीयो समापत उरटुन साहि ॥५५॥ दोहा ॥ बिसातवार सुहावना हरष करन कूपाय ॥ ता दिन,ग्रंथ पूरन भयो सा सुष को वरनाय ॥ १६॥ मानूं दीरघ पंथ कृ फल मै पुंहुतै जाय ॥ सुगम पंथ आगे भली पायो अति शुषदाय ॥ ५७ ॥ देव धर्म गुरु वंदितै ॥ सवही मंगन थाय ॥ शुष ते ग्रंथ पूरन भयो जै जै जै जिनगय ॥ ५॥ ग्रंथ संख्या इंम जानि भव्य सहश्र चतुर्दश मांनि ॥ उपरि पचोस से जानिए यह संख्या उर अनि ॥ ५९॥ पूरन पुन्याश्रव कोया परब ले अनुस्वार ॥ जिन पाग्या. युत बचन सव लपे ग्रंथ निरधार ॥६॥ छंद मात्र अक्षर कहं साधि लेहु बुधिवांन ॥ जो लेषक चुक्यो कहूं दिष्ट पड़े को थान ॥ ६१ ॥ शुद्ध करें तें परमाद कछु कोजे नाहि समान ॥ ताते बुधि तै वोनही लषक देषि शुद्ध ठांनि ॥ ६२ ॥ इति श्री कथा कोश भाषा चेपिई छंद दोहा टेकचंद कृत संपूर्णः ॥ समाप्ता ॥ मोती भादा बदो ॥५॥ संवत् १९५६ शाके १८२१ ॥ श्री ॥ श्रो॥ श्रा॥ श्री ॥ इह कथा काष पंचायतो बड़े मंदिर जी के हैं भा. पत्र ३५२ ॥ __.Subject.-जैन शास्त्र ।
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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