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APPENDIX II.
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कोऊ पार हैं। राम नाम मांहि धर्म धोरज अनेक रहे मुक्ति भुक्तिदाता नाम ऐसा ही उदार है ॥ स्वयंप्रकाश ऐसा नाम जपे नाही जीव तिन जम जूता लावें करें कोटिक धिक्कार हैं ॥ ५३॥ राम नाम जप मन छमा दया बोध देत अगुन सगुन प्रभु रूप है दिषार है॥ राम नाम जप इच्छा इर्षना निवारे मन मुद्धता सफाई प्रीति प्रभू में अपार है ॥ राम नाम जप मन आतम विचार देवे सहज समाधि निरुपाधि को अगार है ॥ स्वयंप्रकाश असेा नाम जपे नाही जीव तिन जम जूता लावै कर कोटिक धिक्कार हैं ॥ ५४॥ इति श्री राम नाम महात्म्य श्री स्वयं'प्रकाश विरचित शुभम् ।।
Subject.-श्री रामनाम की महिमा अथवा माहात्म्य ।
No. 192. Braja Chandrikā by Rão.Tārā Chanda. Substance-Country-made paper. Leaves-181. Size-12" x 6". Lines per page--27. Extent-6,075 Slokas. Appearance -Old. Character-Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1857 or A. D. 1800. Place of Deposit-Sri Devaki Nandanāchārya, Pustakālaya, Kāmabana, Bharatapur.
Boginning..--श्री कृष्णाय नमः ॥ दोहा ॥ गनपति गुनपति ग्यानपति पसु. पतिसुत सुषदाई ॥ रसपति जस गांवन विमल निसि पति वंदित पाई ॥१॥ छप्पै ॥ विमल इंदु मुष विंदु सदा मंगलमय राजै ॥ विसद रदन दुति निरखि हरषि सुखमा सुभ साजे ॥ अंग अंग छवि इतिक जाहि उपमा नहि कोई ॥ सुमिरत मिटै त्रताप मनोरथ पूग्न हाई ॥ अति चतुर चतुरमुख कहत इम वाणी वर वंदित वदन ॥ सव रसदा जसदा अर्थदा मन बच कम सेवहु चरन ॥ २॥ छप्पे को लछन वचनिका ॥ कला चावीस चौवीस के चार पाइ तेरह पंद्रह ॥ अठाइस अठाइस के चरण दाइ ॥ अंत भगन छप्प को सिगरी कलाएं ॥१५२ ॥ सवैया ॥ जा कर वोन विराजत हे स सुनो गुन के गन की मतिं टेरो ॥ उज्जल रूप प्रकासित वासर त्येां पदमासन को दुति तेरो ॥ भूलि रहे चतुरानन स्या सनकादिक वंदित पाइन केरी ॥बानी कहें कर जारि कलानिधि साई हरो जड़ता सब मेरी ॥१॥ ___End.-कवित्त ॥ देवलोक दिगलोक नगलोक नागलोक सुनि सुनि जस जिय पानंद भग्यो करें । बूझि बुझि पितु पति सूझि सूमि मारग को वन बन अद्रि बैठि ध्यान को धरयों करें ॥ देवी दिगपालन को देवलोक जालन को उमा रमा पादि सब बातन रो कर ॥ कुंज द्वार पावन की राधा जू के पावन की गोद ले दबावन की लालसा करो करें॥४०॥ इति श्री ब्रजचंद्रिकायां राव तारा चंद विरचितायां नाट्य भेद वर्णनो नाम षोडशो मयूषः ॥ १६ ॥ इति श्री वज.