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APPENDIX II.
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Beginning.-॥६०॥ श्री परमात्मने नमः ॥ अथ वरांग चरित्र भाषा लिष्यते ॥दोहा॥ कनक वरन तन प्रादि जिन । हारन अषिल दुष दंद.॥ नामिराय मरु देवि सुत वंदो रिषभ जिनंद ॥२॥ काय छंद ॥ श्री जिन को शुभ ज्ञान मुकर अति निर्मल राजत ॥ जामे जगत समस्त हस्त रेषावत भासत ॥ माह सहित संसार विषै मन जिन संतन को। पावन कऐ सदन चित्त सेा जिनवर तिनको ॥२॥ छप्पे छंद ॥ अति विशुद्ध वर सुकल ध्यान वल सुख दायक ॥ निर्मल केवल ज्ञान पाय तिष्ठ जगनायक ॥ वसुविध कर्म प्रचंड नासकर एक छिनक में ॥ अजरामर सिव सुष्य लह्यो जिन पक समय मैं ॥ जैसे जे सिद्ध अनंत गुण सहित वसत सिव लोक मै ॥ ते परम शुद्धता है मुझ ॥ होहु देत नित धोक मैं ॥३॥ सवैया इकतीसा॥ हय गय रथ राज नारी सुत धन साज विनासीक जान चित्त चाहन धरत है ॥ अव्यय मंचित्य ज्ञान मई महा तेज धाम से शुद्ध पात्मां को चिंतन चहत है॥ ताहा के प्रभाव सेती कैवल शुज्ञान पाप वसु विच कर्मनासे सिव जै लहत है ॥ गैसै जै महान गुनथान सूर सदा हमें देऊ ज्ञान लक्षमी नमो नमो करत है॥४॥ ___End.-नमो देव अरहंत मुक्ति मारग परकासी। नमो सिद भगवंत लाक के सिषर निवामी॥ नमा साधु निर गंथहुविध परिग्रह परिहारो॥ सहत परो सह घोर सर्व जन के हितकारी ॥ वंदो जिन.सेन भाषित धरम देय सकल सुष संपदा॥ पई उत्तम तिहुँ लोक म करी छम मंगल सदा ॥ ९९ ॥ चौपई ॥ संवत अष्टादश सत जान ॥ ऊपरि सत्ताईस प्रमान ॥ माह सुकल पाचै समि बार ॥ ग्रंथ समापत कीनौ सार ॥ १०० ॥ दोहा ॥ जब लग मेरु समुद्र हे जव लग शिस अरु सूर ॥ तव लग यह पुस्तक सदा रहा सकल गुन पूर ॥ इति श्री वरांग चरित्र भट्टारक श्री वद्धमान प्रणीत नुसारेण पाडे लालचंद कृत भाषायां वरांग मुनि मर्वार्थ सिद गमन वर्ननो नामा त्रयोदसमः ॥ सग्गः ॥ १३॥ मिति अश्वन शुक्ला ४ समत १०४६ शुभम् ॥
Subject.-वरांग चरित्र ।
Note.-देश मदावर सहर पटेर निवासी, विश्वभूषण भट्टारक के शिष्य बह्मसागर अग्रवाल और इनके शिष्य पाण्डेय लालचंद थे। एक आगरा निवासी लाला हीरापुर में प्रा बसे थे । उन्हीं की सहायता से यह पुस्तक कवि ने लिखी थी। ऐसा लेख पुस्तक में पाया है। ___No. 107. Avadha Vilasa by Sri Lala Disa. SubstanceCountry-made paper. Leaves--47. Size-7" x 5". Lines per page-20. Extent-3,000 Slokas. Appearance--old Character-Nagari. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya.