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APPENDIX II.
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आगरि नागरि गर्व गहेलो ॥ निमि कुल प्रगटि संग सिय प्यारो प्रियकारी रस केली ॥ चन्द्रप्रभा जू के मुकृत कल्पतरु उलही लता नवेली ॥ कंचन वन कमला प्रमोद वन लीला लहरी भेली मोहनि जन्त्र वीन स्वर टेरति प्रीतम चित्त विथेली ॥ सग्नागत पालिनि रसमालिनि चालिनि गज गति हेली ॥ युगल प्रिया अनुराग सदा संबंध गग की डेली ॥२॥
__End.-बैठे कल्पद्म उहियां हो राम टेक वा सखी श्री मिथिलेश ललो रघुनन्दन साहत दिये गलहियां हो राम मृदु मुशकनि चितवनि मृदु वालनि अमिय चुवत जेहि महिंयां हे। राम जुगल प्रिया या जोरो छवि लखि उपमा कहिं कोउ नहियां हो राम || ११३ ॥ चला सम्बी सरजू तोर वसि रहिये हो रामः जहा विहरत दोऊ नित्य विहारी नाम रूप रति चहिय हो रामः वन प्रमोद कुज कुंज प्रति विहरनि की कवि लहिये हो रामः ॥ युगल प्रिया जहां अमित महचरो भाव रीति दिढ गहिये हेा रामः॥
॥ अपूर्ण ॥ Subject.-युगल प्रिया कृत विविध पदों का संग्रह ।
No. 90 (1) Ashțayāma by Jivā Rāma of Chirāna. Subs. tance-Country-made paper. Leaves-5. Size-8 inches x 3 inches. Lines per page-8. Extent-80 Slokes. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya. ___Beginning.-श्रीमते रामानुजाय नमः ॥ दाहा ॥ पवन तनय मानन्द घन सुमिरत सब सुष दानि अष्टयाम वार्त्तक रचा सकन्न सुमंगल पानि १ प्रथम साधक तीन घरी रात रहे ते उठे उठिके प्रस्नानादिक क्रिया कर वाह्यांतर पवित्र हाय के युगल नाम मंत्रादि जप करै जुगल सावादि किंचित्पाठ करिकै श्री अयोध्या जी का स्वरूप उपवन वनराज श्री प्रमोदवन शहर पनाह के कोट के चारो तरफ दृष्टि म लै पावै कोटि के नीचे षाई श्री सरजू जी में लगी है जल पूर्ण है कोटि के चारि दरवाजे पति विचित्र हैं भीतर पुरवासिन के महल और रघुवंसिन का येक वार सभ पर दृष्टि करि खास महल सात आवर्ण रंग महल जाको शास्त्र में लेष है ताके मध्य श्री कनक भवन संज्ञा निकुंज है जेहि के मध्य श्री लाडिली लाल जी सैनादि कीड़ा करते हैं तामै दृष्टि देके उत्तर भाग में दूसरा पावर्ण श्रोचन्द्र कला जू के महल ताकं उतर भाग अपना महल में अपना रूप देषै ॥
__End.-याही प्रकार के रसिक महात्मा मुनिन के लेष पाय कै लिखा है अर्ध पत प्रजंन रास होता है मध्य में रास भोग भारती और अन्त में थारू