SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 196 APPENDIX II. - End.-वनिता वृन्दन मध्य जब रघुवर करत विलास ॥ सुचि अरु अद्भुद हास्य यह तीनौ रसन निवास ॥ २३५ ॥ सख्या मंडली मध्य जब विलसत रघुकुल चन्द ॥ वीर अरु अद्भुद हास्य यह मुख्य मख्य सषकंद ॥ २३६ ॥ दास परिकर मध्य जब राजत गुणनिधि राम ॥ वत्सलता को प्रगट करि देत सबन अभिगम ॥२३७ ॥ पुनि विसिष्ट आदिकन के निकट दास्य अनुभाव ॥ करि पानन्दित करत अति हिये बढ़ावत चाव ॥ २३८ ॥ रसिकसिरोमणि रसनग्रह रघुनन्दन अति रेव ॥ रसिक संग बिन नेकहं जानत नहिं यह भेव ॥ २३९ ॥ यह सिद्धांत आदित्य इव वसै जामु उर व्योम ॥ द्युति अनन्यता हात गत मिश्रित गतं तम ताम ॥ २४० ॥ श्री सोतागर सीताराम सीताराम सीताराम ॥ इति श्री रसिक अलो कृत श्री सोतागम मुक्तावलि ॥ श्री जनक किशागे शरण कृत उत्तर भाग समाप्तः ॥ श्री कनक भवन विहारिणी विहारोजू को जैति || श्री चारुमीला श्री चन्द्र कलाजू को जैति ।। सर्व जुथेम्वरोजू की जैयति ।। सर्व परिकर सहित श्री युगल प्रिया अरु प्रेमलता जू की जर्यात || श्री सोताराम सीताराम ........ | ___Subjee .-पृष्ठ १-१८-श्री सीताराम भक्ति तथा " विमला कमला मिथिला धाम श्री अवध सरयू सीताराम" की महिमा और माहात्म्य वर्णन ॥ १८-२६--रस वर्णन । भक्ति, शान्ति, दास्य, सख्य, वात्सल्य, शृंगार, बैर, मित्रता आदि का वर्णन ॥ No. 83 («). Sītā Rāma Siddhäntälanya Tarangiņi by Janakarāja Kisori Saraņa. Substauco--Country-inado paper. Leaves--35. · Size--12 inchos x 6 inches. Lines per page-13. Extent--About 1,400 Ślākas. Appearance--Now. Character---Vagari. Date of Composition-Samvat 1888 = 1831. D. Place of Deposit--Sri Sadguru Sadana, Ayodhyi. Beginning.-श्री जानकीवल्लभाय नमः श्री मते रामानुजाय नमोनमः श्रीमते सर्व गुरुवे नमः श्री अवध मिथिलभ्यो नमः ॥ नत्वा मारुतपूर्व सीताराम पदाब्ज भृगं । गुगण गण गणनां नाथ कुर्वनन्य तरंगिणीमिमां ॥१॥ दोहा ॥ बन्दों श्री गुरु पद पदुम पवन तनय सिर नाय ॥ करौं अनन्य तरंगिणी भर्म धर्म दुख जाय ॥१॥ भक्ति विमल या में सुधा ताके अंग तरंग ॥ विगसहि सुनत मुमुक्षु मन साह कमल वहु रंग ॥ ३॥ जे सिय रघुवर भक्त जन सा मंगलमय मीन ॥ जिन के दरसन ते सकल पाप पीनता छीन ॥ ४॥ वैधी अरु रागानुगा उभय कूल सा जान ॥ करि निवास जो मजहिं ताके पुन्य पुरान ॥ ५॥ यह जो नन्य तरंगिणी करै अवगाहन काय ॥ उदय उपासन ज्ञान सिय रामभक्ति दृढ़ होय ॥ नाम सुयश सुनि २ श्रवन यदपि प्रोति उर हाय । बिनु जाने पुर राजगृह मन दृढ़ता नहिं होय ॥ ७॥
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy