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APPENDIXII.
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Date of Manuscript-Samvat 1800. Place of DepositŚrī Devaki-Nandanāchārya Pustakālaya, Kāmavana (Mathu. ra).
_Beginning.-श्री कृष्णायनमःप्रणमों अदि अलष x x x x x मेरे तन मा होइ निस्तारा ॥ सुमरों गुरु गोविंद के पाऊं ॥ अगम अपार है ताकर नाऊं ॥१॥ करूं नाम युत अंतरजामी ॥ भगति भाव देहु गरुडागामी ॥ दीनदयाल तू वाल कन्हाई ॥ अपने जन को होइ सहाई ॥ २॥ कृपा करहु तू अंतरजामी॥ निर्मल कर कही वषानो ॥ दोहा ॥ कपा करो करुना सुमय बिनती सुनो चित मारी ॥ भगति भाव देहु हम सामी कहि भुपाल कर जोरो ॥ ३ ॥ चौ ॥ सकल देव प्रनमै चित लाई ॥ अछर प्रर्थ कहां समझाई ॥ सारदा सरस्वतो आदि भवानी॥ निर्मल अछर कहैवषानो॥४॥ कथा अपार मरम नहीं जानों॥ राम नाम चित सदा वषानों ॥ महा देव देवनि को देवा ॥ सुर असुर करौं सब सेवा ॥ ४॥ मम विनती सुनि पुरुष पुरानां ॥ योगेस्वर तुहू रूप वषाना ॥ दोहा ॥ कथा अपार अगम है सुनि स्वामी चित लाई ॥ गीता ज्ञान प्रयास सौ कहि भूपाल सिरनाई ॥५॥
निर्माण काल चाप्पै ॥ संवत कर प्रब करें वषाना ॥ सहस्र सेा संपूरन जाना ॥ माघ मास कृष्ण पक्ष भषऊ ॥ दुतिया रवि तृतीया जो भैऊ ॥ तेहि दोन कथा कोन मन लाई ॥ हरि के नाम गीता चित पाई ॥ संत साध को सुमरन करऊं ॥ हरि गुन कथा हिरदैन मा धरऊ ॥ १३॥ और कछु नहिंभाषौ मांन ॥ गावा गोता गुन भगवान ॥
End.-चोप्पे ॥ कोटि अश्वमेध किए फल हाई ॥ सुनत कथा फल पावै साई ॥ तप तीरथ अनेक फलदाना || सुनत कथा जप्पै मन ज्ञाना ॥ कोटि गौम देइ जो दाना ॥ सा फल गीता सुने पुराना ॥ अठारह अध्याय कहा परवाना ॥ गीता अर्थ कह्यो भगवाना ॥ षोडश दान किप फल हाई ॥ गीता सुनत फल पावै साई ॥ दोहा ॥ गीता परथ कहा प्रभु सुनि अरजुन चित ज्ञान ॥ जो नर कथा इह सुनै पह तजि उर मति मान ॥ चौप्पै ॥ गोता अर्थ जो कहे गिनाना ॥ ताकर पर्थ कहे को ठाना ॥ सवै शास्त्र कर मत जो लीन्हा ॥ गोता अर्थ कृष्ण कहि दीना ॥ इति श्री भगवत गीता सूपनिषत्सु ब्रह्म विद्यायां योगशास्त्र श्री कृष्णाजुन संवादे मोख्य योगो नाम अष्टादशो ध्यायः ॥ १८ ॥ शुभं भवतु ॥ लेखक पाठकयाः॥ सं १८०० पाश्विन सु० ८ गुरी लिखतं ठ• प्राणनाथ पाना(ठा)र्थे ।
Subject.--श्री मद्भगद्गीता का भाषान्तर।