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विवाह
योग्य स्थितिमें होते हैं । विवाह-तत्पर युवाजनोंके हाथमें वह फैसला आ जानेसे कम संभावना रहती है कि वह फैसला विकार-हीन हो ।
प्रश्न-इस निर्णयके लिए आपके विचारानुसार अभिभावक लोग किस विशेष लिहाजसे ( criterion से) काम लेंगे?
उत्तर-मामूली तौरपर उन्हें अपने संतानोंके सुखका और हितका ही विचार प्रधान होना चाहिए । द्रव्य-प्रधान ( Capitalistic) सोसायटीमें इस मामलेमें पैसेका खयाल भी रहने लगा है, पर वह जुदा बात है । उस अपने लड़के-लड़कीके सुखका खयाल रखकर वधू-वरमें वे लोग अनुकूलता खोजेंगे। जहाँ संस्कार, शिक्षा, वय आदिकी अनुकूलता दीखती हो, वहीं वे संबंध करना उचित समझेंगे।
प्रश्न-संस्कार और शिक्षा आदिकी अनुकूलतासे क्या अभिप्राय है?
उत्तर-अभिप्राय बहुत अँधेरा जान पड़ता है क्या ? प्रश्न-क्या अनुकूलता वरचधूके संस्कार और शिक्षामें समतासे हैं?
उत्तर-ठीक ठीक समता नहीं। जरूरी नहीं कि लड़का एम० ए० हो तो लड़की एम० ए० के अतिरिक्त कुछ हो ही न सके । मतलब है कि गुण-कर्मस्वभाव परस्पर विषम नहीं होने चाहिए।
प्रश्न-गुण-कर्म-स्वभावकी विषमता या समताका अनुभव वरवधुकी अपेक्षा अभिभावक अधिक अच्छी तरह कर सकेंगे,क्या यह अस्वाभाविक नहीं जान पड़ता ?
उत्तर-नहीं, मुझको यह अधिक सहज जान पड़ता है। प्रश्न--क्यों?
उत्तर- क्यों कि वर-कन्या और बजुर्गों के बीच कोई शंका संकोच अथवा किसी विशेष आकर्षणका भाव वर्तमान नहीं रहता । वे प्राकृतिक परिस्थितिमें एक दूसरेसे मिल-जुल सकते हैं । फिर, अपनी इच्छा-अनिच्छाओंके बारेमें युवा-जन चाहे जितना भी ज्ञान रखते हों, लेकिन अपनी अक्षमताओं और मर्यादाओं और अपने झुकावसे शायद उनकी इतनी जानकारी नहीं होती जितनी उनके अभिभावकोंकी होती है ।