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________________ ९-विवाह प्रश्न-क्या आप बतलाएँगे कि विवाह करते समय वर-वधू स्वयं उस संयोगके निर्णायक हों अथवा अन्य कोई ? उत्तर ---मैं यह पसंद करूँगा कि अपने अपने बारेमें वर-वधू दोनों स्वयं निर्णायक हों । लेकिन दूसरेको चुननेके बारेमें, अर्थात् संयोगकी उपयुक्तताके बारेमें, मुख्य निर्णय उनके अभिभावक लोग करें । प्रश्न-अपने अपने बारेका निर्णय और फिर संयोग की उपयुक्तताका निर्णय,-क्या इसे आप और स्पष्ट करेंगे? उत्तर-मेरी शादी हो रही है, तो मैं अपनी शादी होने , अथवा न होने दूँ, -- इसका निर्णय मुख्यतासे मेरे हाथमें होना चाहिए । अमुकसे ही मेरी शादी हो, यह निर्णय मैं नहीं कर सकता । अमुकसे न हो, अलबत्ता, किन्हीं विशेष कारणों से ऐसा निर्णय मैं कर सकता हूँ। प्रश्न-विवाह करने न करनेका निर्णय अभिभावकोंको न देकर अपने ही हाथमें रखनेका क्या हेतु हो सकता है ? उत्तर-विवाह दो समझदार व्यक्तियोंके बीचमें हो, तभी वह विवाह है । 'समझदार' से यह मतलब कि वह अपने बारेमें निर्णय करने योग्य हैं। साथ ही 'समझदार'का यह भी मतलब होना चाहिए कि रंग रूप आदिके कारण वह किसीको हीन अथवा अयोग्य न समझें । जो अपने संबंधमें निर्णय करने योग्य है, वह क्यों न यह तय कर सके कि अभी मैं विवाह न करूँ, अथवा कि इतने वर्ष बाद करू, अथवा बिल्कुल ही न करूं। प्रश्न-विवाह अमुक साथ हो अमुकके साथ नहीं, यह निर्णय अभिभावकोंक हाथ रहना क्यों आवश्यक है ? और क्या इस अधिकारसे वर चधूका सर्वथा ही वंचित रहना जरूरी है ? उत्तर-युवा और युवती अधिकतर बाहरी बातोंको महत्त्व दे सकते हैं । देखा गया है कि वे बातें अंत तक उतनी महत्त्व पूर्ण नहीं रहतीं। अभिभावकोंकी निगाह कुछ पक चुकी है और वे उस सम्बन्धको तनिक स्वस्थ दृष्टिकोणसे देखने
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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