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________________ शासन-तंत्र-विचार उत्तर-नहीं, यह तो मन नहीं स्वीकार करना चाहता कि अगर किसीके पास खूब जायदाद या Private property हो तो मेरे लिए लालचका शिकार होना ही अकेली अनिवार्यता है। इसलिए, व्यक्तिगत सम्पत्तिकी संस्था आपाधापीका कारण है, यह कथन योग्य नहीं मालूम होता । आपा-धापीका कारण आपा-धापीकी वृत्ति है। उस वृत्तिका कारण क्या है, और फिर उस कारणका कारण क्या है,-ऐसे गहरे उतरेंगे तो वहाँ जा पहुंचेंगे जहाँ प्रश्न होगा कि, असत्यका कारण कौन-सा सत्य है ? इस प्रकार ऐसी जगह जा टकराना होगा जहाँ बुद्धिकी भाषा कोई समाधान नहीं दे सकती । मैं मानता हूँ कि अपनी चोरीका कुसूर दूसरेके धनको बतलाना काफी नहीं है, यह ठीक भी नहीं है । __इस तरह आपा-धापीको कम करनेके लिए सीधे आपा-धापीकी वृत्ति मंद करनेकी बात ही व्यक्तिको सुनानी होगी। __ अगर बुराईके, Vicious circle के, चक्करको तोड़ना है तो स्वयं टूटकर उससे बाहर होना सबसे पहली जरूरत है। उस चक्करमें पड़े रहकर कार्य-कारणके तकसे, Cause and effect से, बुराईको अपनेसे बाहर तै करके उसपर आक्रमण करनेकी चेष्टा करना अर्थकारी न होगा । जंजीरकी एक कड़ी दूसरीको दोष दे, दूसरी तीसरीको,--तो इस तरह जंजीरके टूटनेकी नौबत न आयगी। ___ लोकन, यह तो स्पष्ट ही है कि यथा-शक्ति उस आपा-धापीकी वृत्तिको मंद करनेके लिए जो बाहरी स्थित्यनुकूलताकी सहायता पहुँचाई जा सके, वह भी पहँचाई जावे । समाजका विधान बेशक उत्तरोत्तर वैसा ही बनता जाना चाहिए, और बनानेकी कोशिश करते चलना चाहिए, जिसमें विषमता कमसे कम हो और नेकीका पालन सरलतासे किया जा सके । समाजकी अवस्था व्यक्तिके मानसपर दबाव डालती ही है। उस अवस्थाको उस दिशामें सुधारना होगा जिसमें वह दबाव न्यूनसे न्यूनतर होता जाय और अंतमें व्यक्ति और समाजका सामंजस्य सिद्ध हो जावे । 'प्राइवेट प्रॉपर्टी' शब्दको गैरकानूनी ठहराने-मात्रसे काम नहीं चल जायगा। जमीन ज़मीदारकी है, यह कहकर भी वह जमीन जमीदारके पेटके अन्दर नहीं समा सकती। यह तो खुली और उजली सचाई है कि जमीन है, और उसमें अन्न पैदा होता है। यह तो एक प्रकारकी भाषाका ही प्रयोग है कि जमीन 'इस'की है या 'उस'की है। उस भाषाके प्रयोगको बदल कर यह भी कह सकते हो कि ज़मीन
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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