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________________ २० प्रस्तुत प्रश्न wwwww MOVvv wwwwwwani प्रथासे उसहीका अभिप्राय झूठा होता हुआ दीख पड़ता है, इसीसे प्रथाको छोड़ने या बदलनेकी बात उठी है । प्रश्न-किन्तु, समाज अपने बुजुर्गको कैसे पाये, इसपर भी कुछ आप कहेंगे? _ उत्तर-परिवारको अपना बुजुर्ग पानेमें कोई दिक्कत होती हुई मैंने नहीं पाई; क्योंकि, सब एक दूसरेके निकट परिचित रहते हैं, और वातावरणमें स्पर्धाका भाव न होनेके कारण सबको समन्वित पारिवारिक हितका ध्यान रहता है। अहमहमिकाकी भावना वहाँ नहीं रहती। समाज भी अगर इसी प्रकार भीतरसे बनता हुआ उठे, तो उसे ठीक अपने नेताको पानेमें कठिनाई नहीं होगी। मुझे प्रतीत होता है कि यह ' भीतरसे बनना' ही सच्ची Democracy है। अब यह प्रश्न है कि स्वाभाविक बुजुर्ग अगर नालायक हो, तो उसकी जगह दूसरेको चुनने में क्या नियम रक्खा जाय ? लेकिन, सच बात यह है कि यदि परिवारमें स्वास्थ्य है, तो वह किसीसे अपने लिये नियमकी अपेक्षा नहीं रक्खेगा और उसे तत्संबंधी नियमका अभाव भी कभी नहीं खलेगा। और अत्यंत सहज भावसे उस परिवारका कोई न कोई केन्द्र-पुरुष चुन जायगा । ' चुन जायगा,' यह भी कहना अधिक है। क्योंकि, चुने जानेकी नौबत आनेसे पहले ही परिवारका केंद्र भरा हुआ दीखेगा और परिवार अपनेको तनिक भी केन्द्रहीन अनुभव न करेगा। प्रश्न-परिवारमें 'वुजुर्ग'से मतलब क्या वृद्धसे है ? क्या समाजमें भी आप ऐसे ही बुजुर्गकी कल्पना करते हैं ? उत्तर-उम्रकी बजुर्गी बेशक कोई कम चीज नहीं है, क्योंकि वह अनुभवकी बुजुर्गी भी है । लेकिन, इसके अतिरिक्त भी जीवनमें कुछ और बातें हैं । बहर हाल इस संबंध स्वार्थहीन नागरिकोंकी बुद्धिपर क्यों न भरोसा किया जाय ? और क्यों उस बारेमें एकका मंतव्य माँगा जाय ? ऐसा तो मालूम होता है कि पचास वर्षकी अवस्थासे पहले किसीके ऊपर नेतृत्वका बोझ आ जानेकी आशंका उस स्थिति में कम हो जानी चाहिए । प्रश्न-समाजकी आपा-धापीकी अनैतिकताका कारण क्या उसकी वह यनावट ही नहीं है जिसका कि आधार सम्पत्तिका निजी अधिकार,-private property है ?
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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