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घाटको
लगगये. इससे टच भी हुआ पर बच्चे के प्राण (व्यग्रता ११) वहा के प्राकृतिक कष्टो के सहने बचाये 1 ओला का आशत राकृतिक श्राशत से, इसप्रकार के दुखी भाइयों के दुख से सहानुपापोर दु.न से अधिक सुख पैदा करनेवाला भूत पेना होता हो (सहवेदन १२) ये सब हुआ इसलिग मदद न था। इसका सहन करना सदुःखमय प्राकृतिक कष्ट है, इन्हे सहना ही उचित है। पीछे चिकित्सा की जासकती है, चाहिय, और कर्तव्य में हानि न हो इसप्रकार हायम छनरी हो तो उसका उपयोग करके थोडा उनका प्रतिरोध आदि करना चाहिये, पीछे बहुत प्रतिरोध भी किया जासकता है। इस प्रकार
चिकित्सा भी करना चाहिये। यथाशक्य दु.खसे बचना चाहिये पर दु.खसे . सद्दु ख आवश्यक हैं पर जिन सदु.ग्यो वचन के नामपर बच्चे की रक्षा रुकना न को हम घटा सकते हैं फिर भी उससे पूरा काम चाहिये. न हानिकर डील होना चाहिये। होता रहेगा उन्हे घटाना चाहिये । अधिक से
अधिक कष्ट सहने से पुण्यबन्ध होगा, नाम होगा २-सद्गुःखमय प्राकृतिक प्रतिविषय भी
इसलिये कम जरूरत होनेपर भी अधिक दुःख
भोगना, अचान है और नाम आदि की इच्छा के लिये किसी दुर्ग:यन अत्गुण. या अतिशीत
से कष्टो की मात्रा व्यर्थ बढाई जाती हो या स्थान में जाना पड़े नो प्रनिधिक्य होगा । उसे
बढ़ने दी जाती हो दम्भ है, छल है । इसे मोघ सहन करना चाहिये । नाक पर कपडा आदि . लगाकर प्रतिरोध भी किया जासकता है।पर तपनक तुपो] या मोघमात्रिकतप [ नकन्ट जिस कारण से दर्गन्ध पैदा हुई उस कारण को तुपा कहते हैं। इससे बचना चाहिये। हटाने का प्रतिरोध और भी अकला है। सहि.
१३-२४---सद्दु खमय प्राकृतिक दुद प्णुता की आवश्यकता तो है ही।
जिमप्रकार बारह तरह के हैं उसी प्रकार परफ़न
भी बारह तरह के है । इसमे आघात प्रादि दूसरे 3-१२-सदादःलमयः प्राकृतिक प्रविषय मनुष्य के किये हुए होते है। जैसे कोई प्रादमी आदि भी इसी तरह से समझ लेना चाहिये। देश की स्वतन्त्रता के लिये जेल गया तो लेल का जहा प्राकृतिक दृष्टि से पानी आदि की कमी हो दुध परकृत सदु ख कहलायगा। सम्भव है अन्न की कमी हो, वहा सेवा के लिये जाकर कष्ट विरोधी सरकार के कर्मचारी उसके साथ मारपीट उठाना पडे ( अविषय ३ ) या वहा मन्छर करे ( आघान १३ ) खराब खानापीना दे (प्रनि
आदि के होने से, जलवायु खराब होने से रोग विषय २४) खाना न दें (अविपय ४) भोजन 'होजाय ( रोग४) जगह ऐसी हो कि घूमने में खराब चीजें या मन्दविप मिलाकर बीमार फिरने की भी गुसाइश न हो (रोध ५) जमीन कदे (रोग १९) आने-जाने की पराधीनता तो ऐसी ऊंची-तीची पहाड़ी हो कि आने जाने में भी रहती हो है अमुक क्षेत्र में सककर रहना पड़ता अतिश्रम पड़े, (अतिश्रम ६) इच्छानुसार चीज है (रोध १७) सख्न सजा होने से अतिश्रम न मिलती हो (इशाप्राप्ति ७ ) या जलवायु आदि करना पड़े (अतिश्रम १८) पढ़ने-लिग्वने को की प्रनिकलता से कुटुम्बियों को न रक्खा जास- किताने था जरूरी चीजे न मिले (इष्टाप्राप्ति :) कता हो । इष्टवियोगद) पहा ऐसे जंगली जान• रियजनों का वियोग तो होता ही है (इष्ट वियोग वरी की बहुलता हो कि दिनगत अनिष्ट की चिन्ता २०) बहुत ही खराब आदमियो की संगति में रहती हो ( अनिष्टयोग.६) वह जगह एसी रहना पड़े इससे खूब परेशानी हो (अनिष्ट योग साधनहीन हो कि वह। रहने से ही आदमी २१) अपमान हो (लाधव २२) इतना काम तुच्छ दृष्टि से देखा जाने लगता हो, (लाघव १०) करना पड़े और सम्हलकर रहना पड़े कि वात उस जगह प्रकृति ने इतनी परेशानियों पैदा करती बात मे व्यसत्ता हो (व्यग्रता २३ ) समान का हा कि ज्यग्रता से काम लेना पड़ता हो होने से दूसरों से सहानुभूति पैदा हो (सह