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________________ "[03 सत्यामृत सीतापर दया करना न भूलजाना चाहिये। कारण साधुपुरुषो का या प्रतिस्पद्धियो का खून सीताओ की दया भूलने का परिणाम होगा घर- करनेवाले, अपनी ऐयाशी के लिये दूसरे का घर घर में गणों का पैसा होना। इसप्रकार की या देश लूटनेवाले, लूटने में बाधक बननेवालों के टोल में न अपगबगे, न अपराधी का मला प्राण लेनेवाले, मृत्युदंड के पात्र है, चाहे चे अकू गान जगत का भाग। कहलाते हो, गुडर कहलाते हा राजा कहलाते हो। माना कि शैतान के भीतर भी इदय होता पर किसी भी तरह का दह क्यो न हो है और वह बदल भी सकता है, यथायोग्य उसके हमारे नतमे न्यायरक्षा या समाजरक्षा का ही हदय परिवर्तन की कोशिश भी करना चाहिये, धान रहना चाहिये । अपनी से स्वार्थवश पा उस दृदय परिवर्तन की भाशा में जीवनमर प न हो, सिर्फ अपराध को ६ करने, उसके था वो उसका भानताथीपन साल नही किया श्रसर से सम्मा की रक्षा करने अपराध क जासकता । इसके असर को रोकने के लिय उचित फैलाव को रोकने या निर्मूल करने का विधार बना भी पड़ेगा। हो और इसके लिये अपराधी को कोर से कठोर दयश्चम्या में इतना विचार तो के दंई या मृत्युदंड देना आवश्यक मालूम हो तो करना ही चाहिये कि किल परिस्थिति में उसने इस विवशता समझकर करना चाहिये । अधिक दुख गेकन क लिने कम दुख का विधान अनु. अपराव किया, क्या वह दूर की जासकती है, उसका वास्तविक मनोभाव क्या होना चाहिये। । चित्त नहीं है। दुख दूर करने का यह भी एक उपाय है। उसके उपर प्रेम मा का प्रभाव पड़ सकता है. इमेनमा किया जाय तो उसकी नजीर बनाकर संयम-सयम भी दु.न्य दूर करने का दूसरे लगेग उमका ठरुपयोग तो नहीं कांगे आदि उगय है, इसका उपयोग हुन खो मे है। अधिमत्र शना का विचार करके जितन कोमलता से कांश दुर्दम्य पापको 18 में जाने से होते हैं काम लिया जामके लेना चाहिये। और सयम से ही पाप की राह रोकी त्रासानी है और दुख से बचा जासकता है, इसलिये वह मानना ही पडना है कि व्यवस्था जरूरी है उसमे गमि का सुधार होता है और मष्टि का ___ मनकार दुख दूर करने के सात पाय । भी मौर इससे दुध घटता है। हैं और उनसे पहिले बताये गये सी पाइ प्रश्न-अब किसी व्यक्ति की मृत्युन दिश नरह के टुम्ब अधाशय दूर करना चाहिये। जाना तर उममें इस क्ति के सुधार को क्या किस किस दुख को दूर करने में किस किस गुजान जाती है। उपाय का उपयोग है इसका मजित विवेचन यही किया जाता है। Tr-मृत्यु का भर आज तक सदु न्या को साधारणत. दूर करने की मनन यं पराध में मंक रहा और दूसरे मैकडो समका जमरत नहीं है सिर्फ उतने अंशमे कम करने की आगे जगियों की रोक हो यही समाज- है जिसमें उसकी कन्यागकारकना का सुधार को गिना है। कभी कभी में वना ती जयगर माग-मयाद वा न लगे। बाद-जी या निकालकर देना १- सदु समय माहतिक श्राधात-प्रोले पाना मी समाज में भी बड़-रात- बरस रहे हैं, एक धचा उनकी मार से गिर ना को पं.ना पाना है। वियों के उपर पड़ा है, जमने दौडका उमे उठाया और मसनम RITI पास ननवाने, भनभ लभाये । इस प्रयान में चार ओले इमं भर यात्रा न म बातो का विचार करक इतना भी दम्योपाय है।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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