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________________ ক্ষোভ ve के बाग नही रोका जासका है उसके असर से होता है इसमे भी वेबारे बिच्छू सांपों का को समाज को बचाने का कार्य दंड द्वाग करना वश नही, अपराध भी नही, फिर भी रक्षा के चाहिये। दृष्टि से उन्हें दंड देना पड़ता है। पागल कुत्त प्रम-देनोनिता पशुता का चिन्ह है, भी बीमार ही होता है पर जब वह काटने दौडत है तब उस मारना ही पड़ता है। वश हो या क्या इसका समर्थन करना पशुता का समर्थन हो पर जब किसी के जरिये दु:श्ववर्धन होता। सना नहीं है। तत्र उसका निरोध करना जरूरी है। उत्तर-नि.सन्देह दण्डनीनि पशुता का दूसरी बात यह है कि जगत मे जितनी चिन्ह है पर उहा पशुता हो वहा कंवल उसका चुराइयाँ है वे किसी न किसी कारण परम्परा का चिन्ह मिटाने से पशुना नहीं मिट सकती। बैल फल हैं, एक आदमी और बदमाश खूनी विश्वास. का सांग निकाल देने से बैल आदमी नहीं बन घाती कृतघ्न आदि है तो उसकी इस मनोवृत्ति जाता । इसलिये जब तक मनुष्यों में पशुना है का निर्माण एमके मातापिता के, या आसपास तब तक उसे नियन्त्रित रखने के लिये, उसके की घटनाओ के कारण हुआ है, और उसके दुःख से दुसग को बचाये रखने के लिये उचित त मातापिता का और आसपास की घटनात्री का देडनीति का होना आवश्यक है | हा। उसका निर्माण भी उससे भी पुराने मातापिता और प्रयोग सम्हलकर करना चाहिये और न्याय की उससे भी पुरानी घटनाओं के द्वारा हुया है इस हत्या न होने देना चाहिये, इसका भी ध्यान प्रकार प्रत्येक बुराई की कारण परम्परा अनादि रखना चाहिये कि कानून के शब्दों का उपयोग में विलीन की जासकती है और उस बुराई को न्याय के विरुद्ध न जाने पाये। हां। अगर प्रेम- कारण दिखान से निरपराध कहा जासकता है, मोनि से काम चल सकता हो, और दूसरोपर ऐसी हालत में उसे दंड देने की जरूरत नही उसके बुरे प्रभाव पड़ने की सम्भावना न हो तो रहती : परन्तु यदि इस विचार से समाज ने प्रेमनीति से काम लेना चाहिये, या दण्ड को प्राय- आज तक दंड-व्यवस्था को न अपनाया होता तो वित्त का पदेने की कोशिश काना चहिये। समाज के दुःख आज हजारो गुणा होते । पर फिर भी दंड-व्यवस्था नो रहना ही चाहिये। जब दड-व्यवस्था के भय ने पुरानी कारण परम्परा पशता चली जायगी तब दडनीति विधान स्पों को नष्ट करक पाप की परम्परा तोडी है। मनुष्य रहनेपर भी उपयोग में न आयगी। आवश्यकता अगर अपने मन के सारे विचारो को डायरी में नरहने से वह उपयोग में भले ही न आये, पर लिन डाले और फिर उन्हें पढ़े तो उस ही नजाने कत्र कैसी जगत पजाय इसलिये मालूम होगा कि वह किसी शैतान की डायरी अमका रहना आवश्यक है। है, पर उसके जीवन में जो वह शैतानियत दिवाई नहीं देती, तो उसका कारण समाज का अपराव भी एक तरह की मानसिक भय है, अपने स्वार्थों को धक्का लगने का भय है। योमरी है और बीमार आदर्मा दया का पात्र इसप्रकार हम देखते है कि परम्परा से कोई बुराई होता है दंड का नहीं, क्योंकि बीमारी में उनका श्रा भी जाती है तो समाज के रंड भय के कारण क्या चश! वह दवी रहती है। इसलिये जब तक मन की ___ उत्तर-खेत में अनाज के पौधा के साथ शैतानियत मरी नहीं है नब तक दंडनीति सभी जो घास-फूस पैदा होता है उसमे घासफूस का 1 के लिये हितकारी है। कोई अपराध नहीं होता, फिर भी अनाज के अपराधी को बीमार समझकर व्या . पौधो की रक्षा के लिये उसका उखाडना जरूरी समय हमें समंष्टि की दया न भूलजाना चाहिये। है। बिच्छू के डंक में और माप के मुंह में विप रावण को बीमार कहकर दया दिखाते . .
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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