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________________ है उसका हिसाव भुलाया नहीं जासकता। छोटे इमपकार प्रेम भी दय दर करने का एक राणी का कम विचार करो, पर विचार अवश्य बड़ा उपाय है। करो, उसे भुलायो नही । इसप्रकार की नीलि से ५-देड (उचो) कल्याण-विरोधी कार्या , विश्वप्रेम की सीमा में सब प्राणी आलाते हैं ति । और प्रशाशक्य उनकी मनोवृत्तियों को बलपूर्वक और अधिक सुखवर्धन की नीति में वावा भी हटाना दण्ड है। जिन पाश्यिापर रेम का नहीं पड़ती, मनुष्य को प्रात्मरक्षा के आवश्यक उचित भाव नहीं पड़ता उन्हें दएड देकर व्ययहै और उचित मार्ग भी खुले मिलते हैं। स्थित करना पडता है । नि.सन्दह मेयम और प्रेम ___ ५-यह वान ध्यान में रखना चाहिये कि से जो सुन्वयन होता है और दुश्य दूर होते हैं प्रेम, शरीर या वचन की चीज नहीं है, वह वह सब नएड से नहीं होना फिर भी जय काट मनकी चीज है, इसलिय अवसरपर मोटा बोल- उपाय नहीं रहता है तब दण्ड द्वारा जिननं दुःखा लिया जाय या कुछ शारीरिक शिष्टाचार का को जितनी मात्रा में गेका बासकना है उतना पालन करलिया जाय इससे काम नहीं रोकना चाहिये। चलसकता । वह मनमें भी हो तभी मफल समाजव्यवस्था के मूल में दो बान है... वाहोसकती है। ऊपर की चीज तो बाज नहीं कल एक संग्रम, दसरा भय ! मपम प्रेम का अनुहुउड़जायगी, और ठीक मौकेपर काम न आयगी, शासन मानता है और मन दह का । प्राय, प्रत्येक मावह हमारे अनजान में अफ्नो निसारता की समझटार प्राणी में न्यूनाधिक रूप में ये दोना बाघोषणा करती रहेगी, और उससे परतिक्रिया भी बतियों रहती है। ओ उत्तम श्रेणी के गणों है मुहोगी । इसलिये 'रेम को स्वाभाविक बना देना ही उनमे सयम इनना रहता है कि उसके आगे भत्र ठीक है । और अब रेस स्वाभाविक वनजाता है न जाता है। जो अधम श्रेणी के प्राणी है । कोतब वह एक तरह से असीम होजाता है। वह भय की छी पर्वाह करते हैं। भय के धागे सयम व सूर्य के प्रकाश को तरह चारों ओर फैलता है। जाना है। मध्यम श्रेणी में दोनो पर्याप्त मात्रा जायह बात दूसरी है कि जिसमें जितनी योग्यता में रहते हैं। उत्तम श्रेणी के लिये दण्ड की श्राव. होती है वह पदार्थ अस प्रकाश से उतना ही चम- मकना नहीं होती । म यम श्रेणी के लिय दण्डकरता है। पर वह प्रकाश किसी पदार्थपर अपनी शक्ति को सता या उसका प्रदर्शन ही काफी है मारफसे उपेक्षा नहीं करता। स्वाभाविक प्रेम भी पर अधम श्रेणी के लिये जमका प्रयोग श्रावइसी तरह सत्र के सुखबर्धन का खयाल रखता है। श्यक है। पर यह कह सकना कठिन हैं कि कौन स्वाभाविक प्रेम या विश्वारेम में एक प्राणी कर किस श्रेणी में रहेगा ? माधारणतः दुखड़ा लाभ यह है कि हम अपने को सा सर्वत्र उत्तम श्रेणी के मालूम होनेवाले मनुष्य किसी सुरक्षित और सहाययुक्त समझते हैं, अर्थात इस अवसरपर या ठीक अवसरपर अधम श्रेणी के बाहेरकार की परिस्थिति निर्माण होने की सम्भावना निकल पड़ता है, वपा से जिन्हें इमानदार समझा पसादनाती है। हरएक पाणी को इसो जीवन में व बेइमानी करने का अवसर पाजानेपर वेईमान कहाा नाना जीवनी में अनेक अच्ची-बुरी परि. निकल पड़ते हैं। इसप्रकार का धोखा शिक्षित वालेथतियों में से गुजरना पड़ता है। अगर पारिणया कहलानेवालो, त्यागी या विरक्त कहलानेवाला. । स्वाभाविक विश्वप्रेम हो तो हरएक परिस्थिति और अच्छे श्रीमानो से भी होजाता है। इसलिये वह दूसरी का प्रेम पासकेगा। इसप्रकार यह उचित ढङ्ग-व्यवस्था होना जबरी है। जो वास्तव श्वप्रेम का प्रत पाणिसमाज के कल्याण के में उत्तम श्रेणी के होगे उनकेलिये वह व्यवस्था वह नये--विश्वसुग्ववर्धन के लिये सर्वोत्तम औषध काम में न आयगी पर वाकी सब के लिये तो होगा। आयगी। इसप्रकार जिस पाप को संयम या प्रेम
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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