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________________ प्रहंकार को बोसकता है, स्वार्थ की वासना को 'ट्रीय शोपण, साम्राज्यवाद आदि होता है, कम कर सकता है। प्रेम फ बिना बात बात मे सब कार्य इतने भयंकर हैं कि एक दिन सारी संशय, खेड, अपमान, आदि मालूम होने लगते मनुष्यजाति को नष्ट कर सकते हैं और इनने है, और रेम होनेपर चुराई भी उपेक्षाशीय होजाती भयंकर संहार किया भी है। जिस सामग्री से हैं. यहा तक कि यात वात में भलाई दिखाई देने स्वर्ग बनाया जासकता था उससे नरक बनाने में लगती है। मनुष्यों की तो बान ही क्या है हमारी इस राष्ट्रीयता का भी काफी हाथ है। रममुद्रा या पन्य व्यवहार से जब पशुआ का राष्ट्र से भी रुद्र सामाजिकता और रेम का पता लगजाता है तब वे भी मित्र बन जातीयता तो किसी भी देश की जनता को हैवान जाते हैं। गणिसमाज के कल्याण के लिये यह बनादेनी है, इससे वह राष्ट्र न संगठित होपाला सर्वश्रेष्ठ प्रोमध है। हमें दूसरों के दिल को 'रेम है, न सहयोग से काम लेसकता है, निर्वल होकर मे ( भक्ति मैत्री वात्सल्य कणा आदि सब म दूसरो का गुलाम बनता है इससे एक तरफ हैं और मेवा उपकार दान नमा सहानुभूति हैवानियत बढती है दूसरी तरफ शैतानियत बढ़ती प्राति उनक कार्य है ) जीतना चाहिये । इससे है। इसप्रकार दरयो की काफी वृद्धि होती है। पाप्राणिकृत दुःख राय निमूल होजायेंगे। जा विभारंमी है उसके मात्र प्रनाकृत कम होते है ३-कब किस मौकेपर मनुष्य को किससे और एक तरह से वह तो किसी का पात्र होता मतलब निकल आता है इसका कुछ ठिकाना नहीं, इसलिये पहिले से मतलय की बात करना नहीं, ये मत्र याने दुख दूर करने. उमे रोकने. ठीक नहीं। मनुष्यमान से नो हमाग मतलब या निमूल करने में सहायक होनी है। हो हो सकता है पर कभी कभी दूसरे प्राणी से पन्न-विनरेम की क्या जारत है. हम भी मतलब निकल सकता है। इसलिये मतलब गरेमी या समाजप्रेमी बने तो काफी है और नामपर मन को संकुचित नहीं बनाया बही सम्भय है। कीट-पतंगों तथा अन्य दुइ जासकना! गणियों में हम रेम कहा तक कर सकते हैं और कोनो से जिन्दा रह सकते है। इसलिये ४ मनुष्यमात्र में प्रेम को सीमित रखना रेम नो उन्हीं से करना चाहिय जिनसं मनलय भी ठीक नहीं क्योकि मनुष्य से भिन्न प्राणियो मे भी, मनुष्य के बरावर न सही किन्तु काफी मात्रा में चैतन्य रहना है। बल्कि बहुत से . उत्तर-शाप इस प्रकरण में काट-पतंगा प्राणियों में समझदारी जानपहिचान, बफादारी, से सम्बन्ध नहीं है क्योंकि दुःपनिरोधोपाय के कृतज्ञता, प्रेम आदि गुण पाये जाते है, इन मरेम का उपयोग नहीं होसकता है जहा गणों के कारण उन पराणियो से एक तरह की सीमारे रेमभावों को समझ सकं । कीट- सामाजिकता पैदा होजाती है। ऐसी हालत में पतंग मनुष्य के रेमभावी को समझकर तदन- उनसे प्रेम न करना; उन पशुओं से भी न ने सार व्यवहार नहीं कर सकते । बिच्छू से तुम को नीचा बनालेना है रेम कृतज्ञता । रेम करो इसलिये डंक नहीं मारेगा एमी वात आदि मनुष्योचित गुणा को नष्ट कर देना है , नही होती फिर भी रेम को सकुचित बनाना हो। यह अलग बात है कि कोई पशु मनुष्य नही। विश्वसुरवात की दृष्टि से रेम क जीवन में बाधा डाले, या जीवन के लिये नु. क्षेत्रको विस्तृत से विस्तृत बनाना चाहिये। यहा और पशु भो में से किसी एक को हो जिन्दा .. निन्त सूचना उपयोगी है। सकने की परिस्थिति पैदा होजाय, तो हमें . १-राष्ट्रप्रेम तक विश्वप्रेम को सीमित को बचाना पड़ेगा क्योकि विश्वसुखवर्थन रखने का परिणाम विश्वव्यापी महायुद्ध, अन्तर्गः सम्भव है। फिर भी जिसमे जिननी मात्रामे ।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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