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________________ तीसरा अध्याय चिनक होपंगो मार्गदृष्टि [ राहो लंको] सुख दुःख विचार (शिम्मो दुक्खो लंको) मानसिक दुखों मे पहिले मनपर असर पड़ता _ विश्वसुखवर्णन जीवन का ध्येय नित्रित है, पीछे शरीरपर पड़ता है। शारीरिक दुग्यों में होजानेपर उसकी राह का विचार करना पडता पहिले 'शरीरपर असर पड़ता है फिर मनपर । है। और इस विचार में कई बातें आती है। जैसे किसीने तमाचा मारा तो तमाचे का दुखद जैसे दुख क्या है, दनिया में कितने तरह के प्रभाव पहिले शरीर पर होगा पीछे मनपर. और दुःख हैं, किचने दुःख दूर किये जासकते हैं. कितने किसीने गाली दी नो गाली का इ.सद प्रभाव दुःख किसी सुखके लिये अनिवार्य है इसी प्रकार शरीरपर नहीं है मनपर है, पर मनपर प्रभाव सुल कितने वरह के हैं, कितने सुख उपादेय है होने से चिंता आदि के कारण शरीरपर भी कितने सुख त्याग करने योग्य है, किस सुख उसका प्रभाव पड़ता है। इसलिये किस दुःख को और किस दुःख के बारेमें हमें किस नीतिसे काम शारीरिक कहना और किस दुःखको मानसिक लेना चाहिये। किसे कैसे छोड़ें और किसे कैसे कहना इसका निर्णय करने के लिये यह देखना प्राप्त करे, आदि । इस प्रकार हसे तीन तरह के चाहिये कि किस दुःख का प्रथम और मुख्य विचार करना है, १-दुःख विचार.रमुख विचार, प्रभा शरीरपर पड़ता है और किसका प्रथम ३-उपाय विचार। और मुख्य प्रभाव मापर पड़ता है। १-दुख विचार (टुक्रो इको) जो शारीरिक दुःख व्यक्ति विशेषमें शरीर दु.व एक प्रकार की बेदना है. जो अपने की अपेक्षा मनपर ज्यादा प्रभाव डालते हैं वे भो को अच्छी नहीं मालूम होती । दीर्घ विचार शारीरिक दुःख है। जैसे किसी मनुष्य को कानेपर भले ही उसकी अच्छी उपयोगिता हो तमाचा के हुस्न की अपेना अपमान का मान. पर भोगते समय एसा मालूम होता है कि यह सिक दुव अधिक मालूम होसकता है. फिर भी न होती तो अच्छा होता, इसके बिना भी अगर तमाचा मारना शारीरिक दुम्व ही गिना जायगा। काम चल जाता तो अच्छा होता अथवा जितनी पर जहापर अपमान का दृष्टिकोण ही मुख्य जल्दी यह बेदना जाय उतना ही अच्छा सेसी होगा वहा वह मानसिक दुःख ही गिना जायगा। वेदना को दु स्त्र कहते हैं। संक्षेपमे प्रतिकूल किसीको इस बैग से जूता-मारा जाय कि उसकी वेदना को दुख कहते हैं। चोर नाममात्रकी हो. मुख्य ध्येय अपमान ___ यद्यपि सभी दुःख मन के द्वारा होते हैं फिर करना ही हो तो इसे मानसिक दुःखमें गिना • भी कुछ दुख ऐसे है जो सीधे मनपर असर जागा । जहा शारीरिक दुख मानसिक । पड़ने से होते हैं, और कुछ ऐसे हैं जो शारीरिक दुव के लिए दिया गया हो वहा उसे मिन दुख । विकार से सम्बन्ध रखते हैं । यदापि सभी दुखो कह सकत है क्योंकि इसमें दोनो दुखो का * का असर सन और शरीरपर पड़ता है, फिर भी मिश्रण हुन्मा है। फिर भी दुःख के मुख्यमेद दो किसीम मन की प्रधानता है किसी में शरीर की। ही हैं एक शारीरिक, दूसरा मानसिक निमित्त
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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