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________________ सत्यामृत - - - - परश्न-अन्नादि की रक्षा के लिये जो अनि- कर सकते कि स्पर्श करने वाले का इरादा क्या ये वध करना पड़ता है वह ठीक है, पर सुख- है, या अनजान में जो इससे कुछ भूल हुई है न के नामपर और भी हिंसा कार्य होते हैं। वह दंडनीय है या नहीं, और है तो कितनी है। मि मच्छर आदि के नाश की औषणे, चूहे पक- बस, ये तो सारी शक्ति लगाकर अक्रमण करहेंगे ने या मारने के पिंजड़े आदि बनाये जाते हैं, फिर भले ही वह वेचारा रातभर चिल्लाता रहे या प विच्छू आदि मारने के कार्य होते हैं। विन्छु मरजाय । इसप्रकार हजारो निरपराध आदमी नबूझकर किसीपर आक्रमय नहीं करता, सर्पदंश से मरते है और बिच्छू के डंक से नडरोप भी विना छेड़े आक्रमण नहीं करता फिर पते हैं ऐसी हालतमे अगर इनको हिसा की जाती की उन्हें मार दिया जाता है, सिर्फ स्वार्थ के नाम है तो वह आत्मरक्षा और सुखवन का ही र नहीं किन्तु जन हित के नामपर भी । सुख प्रयत्न है। जो व्यावहारिकता की दृष्टि से न्यायोधन का ध्येय आखिर इस प्रकार हिंसा बढ़ाकर चित है। काफी दु.ख बढ़ाता है। अहिंसा के ध्येय से इन इनकी हिंसा रोकने का सर्वोत्तम उपाय यह नव की रक्षा होसकती है। है कि साफ सफाई रक्खी जाय और इन्हें पैदा उत्तर-कुछ अनावश्यक हिंसाएँ होती हैं न होने दिया जाय । इतने पर भी अगर ये पैदा पसर, अहिंसा के नामपर उनसे थोडा बहुत होजाय वो आत्मरना या आत्मीयरक्षा की दृष्टि बचा भी जासकता है, और कुछ बचना भी से इनकी हिंसा करना पडेगी। टोटल मिलाने पर वाहिये, पर सामूहिक रूप में यह अव्यवहार्य यह विश्वसुख वर्धन के अनुकूल कार्य होगा। है और अनिष्ट भी है। प्लेग के कीड़े मरेगे इस- हिंसा अहिंसा का विचार करते समय हम लिये प्लेग की हवा को शुद्ध न करना चाहिये, इसबात का विवेक तो रस्यना ही होगा कि हिंसा यह एक तरह का पागलपन होगा। मनुष्य और को बिल्कुल हटाया नहीं जासकता इसलिये प्लेग के कीड़ो को एक तराजू पर नहीं रक्खा दोनों का टोटल मिलाना उचित होगा। टोटल जासकता । आक्रमणकारी मनुष्यसे जिसप्रकार में हिंसा अधिक हो तो उस कार्य को हिसा माना हम अपनी रक्षा करते हैं उससे अधिक रक्षा जाय अहिंसा अधिक हो तो अहिंसा मानाजाय । आक्रमणकारी कृमि आदि से करना पड़ेगी। ऐसा कोई बहीखाता नहीं होता जिसमे सारी मच्छरों का हमने कुछ नहीं बिगाड़ा पर वे जब- रकम जमा मे ही लिखीजाय । जमा और नामा दस्ती आकर हमारा खून चूस जाते हैं यह आक- दोनों तरफ ही रकमें लिखी जाती है सिर्फ इस मण है। यह सम्भव नहीं है कि उनके साथ सम- बात का ध्यान रखा जाता है कि नामा में रकम मौसा कर लिया जाय कि एक बार तुमने खून ज्यादा न होजाय | जीवन के बहीखाते में भी चूसलिया सो चूसलिया, पर अब कोई मच्छर हमें यही बात देखना पड़ती है । अहिंसा हिंसा खटमल आदि हमारा खून न चूसने पाय । ऐसी दोनों तरफ रकम चढ़ती है, देखना यही चाहिये हालतमें उनका संहार करना ही पड़ेगा। चूहा कि अहिंसा से हिंसा बढ़ न जाय । वही खाते की आदि तो हमारा अनाज खाताते हैं दीवारे फोड़ तरह इस बात का भी विचार करना पड़ता है • देते हैं न खाने का भी सामान काट काट कर कि गिनती से ही जमा नामें का हिसाव नहीं बेकार कर देते है इनसे भी कोई सुलहसन्धि लगता । जमा में एक रुपया हो और नामें में सम्भव नहीं है । साप बिच्छू इस तरह जबर्दस्ती पचास पाईयाँ हो तो यह नहीं कहा जाता कि आक्रमण नहीं करते पर किसी कारण अनजान रुपया तो एक ही है और पाइयाँ तो पचास है, व में भी अगर पर्श होजाय, उस स्पर्शसे इनका इसलिये नाम की रकम बढ़गई । रुपया एक होकर नुकसान हुआ हो या न हुआ हो ये डक मारते भी पचास पाइयों से कई गुणा है इस बात को है या काटम्बावे हैं। ये इसबात का विचार नहीं भुलाया नहीं जाता । इसी तरह जीवन के वही
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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