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________________ - - - अपरेशन किया जाय जिससे सन्तान पैदा न हम तो पंडितजी बनकर पढ़ाने का धंधा करते होसके । इसप्रकार उन्हें नियंश किया जाय। है, या व्याज का या सट्टे आदि का धंधा करते ५- कटीले तार आदि लगाकर कृपिघातक है, किसी का खेत जानवर खाते हैं इससे हमारे पशुओ का आना रोका जाय। धंधे को क्या नुकसान ? तब हम पशुओपर दया यथाशक्य ये उपाय किये जायें, अगर ये बताने से क्यो चूके १" यह सब दयानता नहीं उपाय पूरी मात्रा में न किये जासके और कृषिCHIN E है घोर स्वार्थपरता है इसलिये अधर्म है ! धर्स रक्षण के लिये कृषिघातक या धनजन नाशक का विचार तो वही होगा जिसमें मनुष्यमात्र के जानवरो का शिकार आवश्यक हो तो करने की हिन का ध्यान रक्खा जायगा और प्राणिमात्र अनुमति दी जासकती है। के हित का विचार करते समय, अधिक चैतन्य और हीन चौतन्यवाले पाणियों में विवेक रक्खा ___प्रश्न अनुमति क्यों दीजाय १ उपयुक्त जायगा, तथा आत्मौपम्यमाव से काम लिया पांच सूचनाओं का पालन किया जाय । न होसके जायगा। तो सब अपने भाग्य भरोसे रहे। किसी का यहां आत्मौपम्यमाव का खुलासा यह है शिफार क्या किया जाय ? कि जो मनुष्य यह कहता है कि अन्नामाव से । उत्तर-पहिला उपाय तो पाच सूचनाओ मनुष्यो की मौत भले ही हो, पर पशुपक्षियों की का पालन ही है पर जब उनसे इतनी सफलता अन्ननाशक पशुपक्षियो की भी, रक्षा होना । न मिल सके कि सत्र मनुष्यों को खाने लायक चाहिये, उनका कर्तव्य है कि चे एक ऐसा खेत अन्न मिलजाय, तब भाग्य भगेसे बैठने से कैसे लेलें जिसमें उनके कुटुम्ब के लायक ही अन्न । काम चलेगा? पशुपक्षियों और मनुष्यो में से पैदा होता हो, और जिसे जंगली जानवर था, किसी एक वर्ग को प्राण देने के लिये चुनना बन्दर आदि घर जावे हो, जिन्हें रोकना अशक्य होगा। पशुपक्षियों को बचाकर मनुष्यों को मरने होपडा हो. फिर यदि अन्न कम पैदा होनेपर भी। देना विश्वसुखवर्धन की दृष्टि से अनुचित तो है के भूखे रहकर, वालवच्चों को भूखे रहकर, मरने ही, साथ ही कोई आणी इस तरह जानबूझकर को तैयार हों तो समझा जायगा कि वे पशु-। भूखा मरना पसन्द नहीं करता फिर मनुष्य कैसे पसन्द करेगा इसलिये अस्वाभाविक भी है। पक्षियों की रक्षा करने के पक्ष में हैं। पंडिताई इसके बाद सवाल होगा कि भूखों मरने के लिये का धंधा करते हुए, या नगर में ऐसा काम करते । कौनसे मनुष्य चुने आँप और किस कार चने हुए जिसका अन्नधातक जानवरो से सम्बन्ध जायें ? जो लोग पशुओ को बचाने के लिये नहीं आता, उस परिस्थिति का अनुभव नहीं हो. मनुष्यों के भी मरजाने की पर्वाह न करनेवाले सकता जो पशुपक्षियों और चूहों आदि से खेती है क्या वे पशुओं पर दया से प्रेरित होकर खुद का नाश होने से पैदा होती है। भूख से पण छोडने को राजी होजायगे ? वे हम शो से अनुमति दें या न दे, पर खुद मरने को राजी नहीं हैं तो पशुओं के ऊपर हमारेलिये जो हिंसा दूसरों को करना पड़ती है, यातनी मया दिखाकर मनष्य की अवहेलना का और जिसका हम लाभ उठाते है उसकी जिम्मेक्या अर्थ है। दारी हमारे ऊपर आती है और इसमें हमारी यह सोच लेना कि ' हमारे पास तो पैसा मौन अनुमति मानीलाती है। इसलिये यदि हम है हम तो महंगे से महँगा अन्न खरीदकर खालेंगे अन्नाभाव से स्वयं मरने को तैयार नहीं हैं तो इसलिये हमें तो मरना ही न पड़ेगा, मरनेवाले अन्नामाव घटाने के लिये दूसरे जो कार्य करत तो गरीब होगे, सो मरें । उनका भाग्य, हम पशु. हैं उसमे हमारी मौन या अमौन अनुमति है। पत्नियापर नया दिखाने से क्यो चूकं १ अथवा इसी ष्टि से अनुमति देने की बात कहीगई है।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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