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________________ [[४] सत्यामृत - नो सूक्ष्म 'राणिवध होता है, उसका विचार नहीं आदि संयम शेरको अपेक्षा गाय में अधिक है। किया जासकता । बहुत से लोग सूक्ष्म प्राणियों इसलिये गाय शेर की अपेक्षा अधिक चैतन्य की इतनी अधिक पर्वाह करते हैं कि उनकी रक्षा वाली है संयम चैतन्यके विकास का बहुत बड़ा के नामपर मनुष्य की भी पर्वाह नहीं करते, या चिन्ह है। शारीरिक शक्ति से चैतन्य विकास मनुष्य के रति मनुष्योचित कर्तव्य भी नहीं का कोई सम्बन्ध नहीं है। इसलिये गाय बचाने काते, वे हिंसा-अहिंसा विचार में या सुखद स्त्र के लिय सिंह वय किया जासकता है। विचार में अविवेकी हैं। प्रश्न-तब तो मासमवण आदि का पूरी इस कार सुखवीन के कार्य में दख- तरह समर्थन किया जायगा। शिकार की कार वर्षन कुछ होता भी हो तो चैतन्य की मात्रा का प्रधा भी ठीक समझी जायगी।। विचारकर टोटल मिलाना चाहिये । टोटल मिलाने उत्तर-मासमानण की अनुमति सिर्फ पर सुखवर्धन अगर अधिक मालूम हो तो सुख- वही दीजासकती है जहां अन्न आदि अन्य वर्णन करना चाहिये। इस बात का पूरा ध्यान सामग्री इतनी न होती हो जिससे मनुष्य जिन्दा रखना चाहिये कि टोटल मिलाने में सिर्फ रह सके स्वाद लोलुपता आदि के कारण मांसपाणियों की संख्या का विचार नहीं करना है भक्षण को अनुमति न दीजासकेगी । शिकार के उनकी चैतन्य मात्रा का विचार करना है। विषय में भी यही नीति रहेगी। जहा अन्न नहीं प्रश्न--कोई जीव छोटा हो या वडा. उसका होता वहा शिकार करना अनिवार्य होगा ही, सुख उसको उतना ही प्यारा है जितसा चडे पाणी साथ ही अगर जानवरों के आक्रमण के कारण को अपना बड़ा सुख पारा है। पीने का जन्म खेती बगीचा, आदि का नाश होता है और अन्यसिद्ध अधिकार भी जितना हमे है उतना सेमी उपायों से रोका नहीं जासकता वहा भी शिकार है फिर हम असंख्य प्राणियों का वध करक की अनुमति देना होगी। फिर भी यह उचित स्वयं जिन्दे रहे या सुखी बने यह कहा तक है कि हमें ऐसी व्यवस्था बनाना चाहिये जिससे उचित कहा जासकता है ? पशुवध न करना पड़े। निम्नलिखित सूचनाओं का पालन होसके तो अच्छा। ____उत्तर-इसमे कोई सन्देह नहीं कि जीने का जन्मसिद्ध अधिकार हरएक को है, पर दो --अधिक से अधिक अन्न पैदा किया प्राणियों के जन्मसिद्ध अधिकारों में अब संघर्ष जाय और जितना अन्न पैदा होसकता हो उसी हो तब किसका जन्मसिद्ध अधिकार सुरक्षित के अनुसार जनसंख्या को नियन्त्रित रक्खा रखना चाहिये इसके लिये कोई न कोई निश्चित जाय। इसकेलिये सन्तति-नियमन की प्रथा अपनीति बनाना पडती है। और वह नीति है विश्व नाई जाय। सुख वन की। इस तरह के प्राकृतिक या अनि २- पिघातक जो प्राणी पकड़े जासका वार्थ संघर्ष में अधिक चैनन्यवाले पणी की हा उन्हें पकड़ कर ऐसी जगह छोड़ा जाय जहा रक्षा करना चाहिये । इसलिये मनुष्य को जीवित साकर वे फिर कृपिघात न करसके। रखने के लिये अन्य प्राणियों का वध किया ३-कृषियासक नर माछा पशुओं को जामकता है, पशुपक्षी श्रादि को जीवित रखने पकड़कर अलग-अलग अहातों में बन्द किया के लिये वनस्पति आदि का वध किया जासकता जाय। वे वहा, समयपर आयु पूरी कर मर है। पर शेर को जीवित रखने के लिये गाय जायेंगे और शारे सन्तान पैदा न होने से निशा हरिण आदि प्राणियों का वध नहीं किया जास- होजायेंगे। कता। क्योंकि शेर का चैतन्य गाय था.दे से ४-कृषियातक नरपशुओ को पकड़कर 'अधिक नहीं है । चन्कि सामाजिकता वान्मल्य या तो उन्हें बधिया करदिया जाय या ऐसा
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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