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________________ सत्या उहा अहंकार आदि कैसे रहसकते हैं। सचमुच मरते हैं उन्हें बचाने के लिये हमे पानी पीना नही रह सकते, ठीक उसी तरह जिस तरह विश्व- और स्वाद लेना चन्द करना पड़ेगा इस तरह सुखवर्यन के होनेपर दुःस्वार्थ और पाप नी मानवसमाजका था प्राणिसमाज का सर्वनाश रहसकते । यह तो झूठी दुहाई देकर पाप छिपाने ही होजायगा । इस प्रकार वत्र जीवन ही नहीं की बात है सो मुठी दुहाई को कहां कहा रोक रहेगा तब जीवन का ध्येय या धर्म क्या रहेगा ? सकते है ? इसलिये मूठी दुहाई को पर्वाह न कर प्रश्न-अपने जीने के लिये भले ही सूक्ष्म हम ठीक अर्थ लेकर चलना चाहिये 1 ठीक अर्थ हिंसा होती रहे पर दूसरों के लिये हम हिंसा मानकर भी अगर दुरुपयोग हो तो दुरुपयोग क्यों करें। मानना चाहिये । विश्वसुखवधन का ठीक अर्थ उत्तर-यदि सूक्ष्म हिंसा भी न होने देना लेनेपर उसकी ओट में पाप या दुःस्वार्थ नहीं हमारे जीवन का ध्येत्र है तब उस ध्येय को सत्र छिपसकते जिससे उसे ध्येय न माना जाय। से पहिले अपने ही ऊपर अजमाना चाहिये। प्रश्न-माना कि विश्वसुखवर्धन की ओट अगर सक्ष्म हिंसा पाप है तो सभी के लिये पाए मे पाप नहीं छिपसकते। फिर भी यह बात तो है। एक पाप अपने लिये किया जाय तो पाप साफ है कि सुत्रवर्धन की कोशिश करनेपर भी नहीं है चा क्षन्तव्य है और परोपकार की दृष्टि से दुःखघर्षत होता है । किसी भूखे को मांस दूसरों के लिये किया जाय तो पाप है, इस स्वार्थखिलाने में जैसे एक को थोड़ा सुखवधन और परता और पक्षपात को धर्म कैसे कह सकते हैं ? दूसरे को काफी दु.खवधन होता है उसीप्रकार और तब यह अहिंसा का शुद्ध विचार भी नहीं पानी पिलाने आदि हर एक कार्यमे है । हम रहता। परोपकार के नामपर असंख्य शुद्र जीवो का दूसरी बात यह है कि हमें अपने लिये भी जीवन नष्ट कर देते हैं इसप्रकार एक प्राणी के परोपकार की जरूरत है । अगर हम किसी ससवन के लिये असंख्य प्राणियों का दुःख- बीमार आदमी को पानी न पिलायें तो हमारी वर्धन करते है। इसलिये अच्छा तो यही है कि नौनिक अनसार हमारी धीमारीमें दूसरा हमें पानी मनुष्य परोपकारी बनने की अपेक्षा अहिंसक नहीं पिलायगा। हमारी सेवा के बिना दूसरे मर बने । सुखवढाने की अपेक्षा दुःख न वढाने का आयेंगे और दूसरों की सेवा के बिना हम मर कार्य करें, यही हमारा व्यग्र होना चाहिये । सीधे जायेंगे । इसलिये यह हन द* की मूत्ता और शों में अहिंसा हमारे जीवन का ध्येय होना कृतलता है कि हमें अपनी भाई के लिय तो चाहिये। सूक्ष्महिंसा करना चाहिये पर दूसरे की भलाई से उत्तर--अहिंसा दुःख को रोकना है। और क्या लेना-दसा ? दूसरे की भलाई के बिना हमारी दुखको रोकना भी एक तरह का सुत्रवधन है। मलाई भी टिक नहीं सकती। इसलिये पूर्ण स्वार्थ इसलिये अहिसा म भी सुखवध न को हराष्ट काम के लिये पूर्ण पार्य श्रन्यावश्यक है ? सच पूछा करती है। फिर भी सुवर्व नपर उपेक्षा करके जाय तो परोपकार भी एक तरह का ऋण चुकाना चंचल अहिंसा को जीवन का ध्येय नहीं बना है। व्यक्तिगत ऋण चुकाना इसे भले ही न सकते । क्याकि वह अव्यावहारिक है और व्याव- कहानाय किन्तु सामाजिक ऋण चुकाना इसे 'हारिक भी होती तो अनिष्टता के कारण उसे कहना चाहिये। हम देशाटन करते हैं जगह जगह 'स्वीकार नहीं किया जासकता था। दूसरों के वनवाये हुए कुत्रों का पानी पीते हैं ____ अगर हम मूक्ष्म हिंसा रोकने की कोशिश दूसरे के द्वारा बनवाई हुई वर्मशाला में ठहरते हैं करें तो एक तरह से सामाजिक प्रलय जाय। और दूसरों की अनेक वस्तुओं का उपयोग करते पानी पीने में और वाम लेने से जो सुक्ष्म जीव हैं इस ऋण को चुकाने के लिये यदि हम भी
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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