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________________ सत्यामृत - -- चौपट कर जाता है। विश्वसुख को ४३य बनाने दोनो को सुख अधिक मिलजाता है। से आत्मोद्धार भी होता है और सर्वोद्वार भी एक आदमी गढ्ढे में गिरपड़ा हो और होता है, आत्मोद्धार पर जोर देने से आत्मोद्धार उसके निकालने का हम प्रयल करें तो हम कुछ भी नहीं होपाता और सर्वोद्धार भी नहीं होपाता। को होगा. पर जितना हमें कष्ट होगा उससे निम्नलिखित विवेचन से यह बात ध्यान में कईगुणा आनन्द उस आदमी को मिलजायगा । बाजायगी। इस प्रकार सामूहिक रूप में संसार में सुख क यदि तम अपने सम्बको ही जीवनका ध्येय सम. द्धि होती है। माग ता दूसरमा अपन सुखका अपन बावन का जिस प्रकार एक वीज को मिट्टी में गिलाने ध्येय सममेंगे। तुम अपने स्वार्थके कारण दूसरेको से कई गणा बीज और फल मिलता है उसा. पर्वाह न करोगे,दूसग भी इसी प्रकार तुम्हारी पवोह प्रकार परोपकार रूपी वृक्ष के लिये हम अपन न करेगा। इस पारस्परिक असहयोग और लाप- सका जितना बलिदान करते है उससे कई वाही का परिणाम यह होगा कि संसारमें जितना सब दसरेको मिलता है। इसी प्रकार कभी सुम है उसका शतांश मात्र रह जायगा, और दुःख हमारा भी अवसर आता है जब हम दूसरे के मोगुणा बढजायगा। तब तुम्हारे हिस्से में भी त्याग का फल पाते हैं इसप्रकार परस्पर के उपसख कम और दुःख अधिक पड़ेगा। जब संसार कार से सब सुखी होते हैं । में अधिक से अधिक सुन्य होगा तथ व्यक्ति को भी अधिक से अधिक सुख मिल सकेगा । सह. : ___कमी कमी तो हमारी थोड़ी सी भी सेवा योग से सुख चढता है और स्वार्थपरता से दुख . वढना है। यह कदापि न भूलना चाहिये कि , एक आदमी कुए में गिर पड़ा, उसके बचाने में दूसरी का सुम्ब बढ़ाने से अपने सुख बढ़ाने में हमें जो कष्ट सहना पड़ेगा उससे हजारों गुणा सुख उसके प्राण बचनेपर उसे मिलेगा। इस मदद मिलती है इसलिये कहना चाहिये कि प्रकार अपने थोड़े से प्रयत्न से दूसरे को कई सुप या सर्वसुख में निजसुख है। . गुणा सुख मिला और दूसरे के थोड़े से प्रयत्न से अगर मा-माप सोचते कि बालबच्चों के पालन-पोषण की तकलीफ क्यों उटाई जाय तो के हिस्से अधिक सुख पाया। इसलिये वहा अपने को कई गुणा सुख मिला, इस प्रकार दोनों इसका परिणाम यह होगा कि मनुष्यजाति जाना चाहिये कि परसुख मे निजसुख है। वर होजायगी, और मा-बाप को भी बुढ़ापे में सवा करने को कोई न रहेगा। इससे मा-बाप ___मनुष्य जितने अंश में स्वार्थान्ध होचा है फाटलानेवाले भी परेशान होंगे और सन्तान कर उतने अंश में सुख कम पाता है। परस्पर के उपलानेवाले भी, इस प्रकार सारी मानवजाति का कार से, सहयोग से सब सुखी होते हैं। मानतो 'पता होजायगा, और उससे सभी दुखी होंगे। दो व्यक्ति ऐसे हैं जो बिलकुल जुद-जुदे रहते हैं, 'सुपमएटार को ष्टि से मनुष्यजाति कगाल हो- एक दूसरे को जग भी सहायता नहीं करते दोन आयगी और दुग्म सैरहो गुणा बढजायगा। ही साल ग्यारह माह नीरोग रहते हैं और एक उसमय व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपनेमाह शेमार । बीगारी में कोई किसी को सहायता पराप पा भगौणकर संसार में सुग्न बढ़ाने की नहीं करता : अब कल्पना कीजिये बिना परिचर्या पोशिश करे । दृमरे का उपकार करने में जितना के एक महीने तक बीमार रहनेवाला व्यक्ति उग में साना पड़ता है उससे शई गुणा सुख कितना दुना होगा । ग्यारह महीने की नीरोगता गरे को मिलता है, इमीप्रसार हमारे लिये दूसरा का सुख भी उसके आगे फीका पड़ जायगा। बार नष्ट टाना है तो उसके दुःय में कई अगर वे धीमारी में एक दूसरे की सेवा करें तो गुप मुराग मिलना । इमामगार यानधागे से सेवा करने मे जितना कष्ट बढ़ेगा उससे दस गुणा
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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