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________________ हाकाड R AM--- - - - - चला जाय । सो चला जाय । अगर सेर भर . २-जीवन की स्थिति और वृद्धि के लिये दुःख दूर होने से तोलाभर सुख भी दूर होता है जो जो कार्य प्राणी करता है उनमें भी अधिकांश तो क्या हानि है ? टोटल में तो लाभ ही है। मे आनन्द आता है। खाना-पीना शरीरस्थितिके उत्तर-संसार को अधिकदुःसमय मानना रखत, चबानेकी और पेट मे बोमजादनेको तकलीफ लिये जरूरी है पर उनमे आनन्द आता है । साधा. भ्रम है । ससार में दुःख और सुख दोनो है और हमे नहीं मालूम होती पर स्वाद का और तृप्ति दु.असे अधिक सुग्व है । किसी व्यक्ति विशेष की का आनन्द मालूम होता है । वंशवृद्धि के लिये वात जुदी है सम्भव है उसके जीवन मे सुखसे नरनारी सहवास की जो क्रिया जरूरी है वह भी अधिक दुःख हो पर साधारण प्राणी के जीवनमें और टोटल मिलाकर सारी प्राणिसृष्टि में दु.ख जीवन तो आनन्दमय है ही, पर जीवनस्थिति की प्रकृति ने आनन्दमय बनादी है। इस प्रकार से अधिक सुख है। इसलिये दु.खसुख दोनों का जो क्रियाये हैं वे भी आनन्दमय हैं। अभाव कर देने से जगत् या प्राणिसृष्टि घाटे में ही रहेगी ! दुःखसुख की मात्रा जानने के लिये ३-सामाजिकता का आनन्द भी एक सुलभ निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य है- आनन्द है। कुछ लेन-देन का व्यवहार न भी किया जाय पर एक दूसरे के सान्निध्य से ही १-जीवन ज्ञानमय है और ज्ञान सुग्वमय प्राणी को श्रानन्द आता है। इससे जो आशा है। जिन बातो के जानने से प्राणी को कोई निर्मयता आदि पैदा होती है वह प्रानन्द तो शारीरिक सुख नहीं होता उनसे भी उसे मान- विशेष है ही, पर भय का कारण न होने पर भी, सिक सुख होता है। एक बना किसी भी नवीन कोई आशा न होनेपर भी प्राणी अकेलेपन की चीज को देखकर किलकता है। नई चीज को अपेक्षा साथियों के साथ रहने में आनन्द का जानने का आनन्द ही एक निरपेक्ष आनन्द है अनुभव काते हैं। यह बात मनुष्यो में ही नहीं जो संसार मे भरा पड़ा है। देशाटन करने में देखी जावी पशुपक्षियों में भी देखी जाती है।। घर के बराबर आराम नहीं होता फिर भी नये यहा तक कि सजातीय प्राणी न मिलनेपर , नये अनुभवो और जानकारियों का आनन्द लेने विजातीय प्राणी तक से यह सामाजिकता पैदा । के लिये मनुष्य पैसे के खर्च की और शारीरिक होती है और उसमें आनन्द आता है । मनुष्य कष्टों की पर्वाह नहीं करता । नाटक सिनेमा कुत्तों से हरिणो से तोतों से तथा भिन्न-भिन्न देखने, खगोल भूगोल को कितावे पड़ने, कहानी तरह के पशुपक्षियों से निस्वार्थ प्रेम से सामाजिश्रादि सुनने में मनुष्य को शारीरिक आनन्द कुछ कता स्थापित करता है और आनन्द पाता है। नहीं मिलता फिर भी इनकी जानकारी से इसे दूसरे शब्दों में प्रेमानन्द कह सकते हैं। मन श्रानन्द रस से भर जाता है इसकेलिये वह यह भी ससार में भरपूर है। पैसे भी खर्च काता है, एक जगह बैठने का कष्ट ४-प्रकृतिने चौथा आनन्द रसानन्द भी भी उठाता है, निद्रा वगैरह न लेपाने का कष्ट भी रक्खा है। उसने पांच इन्द्रियों दी उनका उपसहता है फिर भी जानकारी के कारण अपने को योग जीवन टिकाये रखने में तो हुआ ही, साथ लाभ में समझता है । इस जानकारी के अन्य ही उनके विशेष विषयों से आनन्द का श्रोत भी परिणाम हो चाहे न हो इसकी पर्वाह किये बिना बहा। पाखो ने तरह तरह के सौदर्य का, जो ही प्राणी आनन्दानुमाव करता है । इससे मालूम प्रकृति ने मर रक्खा है, रस लूटा, खाद्य पदार्थों होता है कि ज्ञान आनन्दमय है, और जीवन मे नाना तरह के स्वादिष्ट रस भरे हुए हैं, फूलोंमे ज्ञानमय है इससे यह सिद्ध होता है कि जीवन सुगन्ध है, कोयल आदि का संगीन है, शीतल आनन्दमय है। पवन है आदि समी इन्द्रियो के लिये असाधारण
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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