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के बाहर कह दिया जाता है । एक आदमी मनमे कुछ विचार रहा है, हम उसकी विचारधारा को उसके अनुrear for कहने, सम्भवत: कोई बाह्यचिन्ह न मिने से तर्क का अविप कहते तो यह ठीक हैं परन्तु भूत भविष्य तथा अत्यन्त दूर के कारण परोच वस्तुओं को, जिनके प्रत्यक्ष करने का कोई माध्यम ही न हो, और fara faran fear frन्न लोगो या मतो की भिन्न-भिन्न मान्यता के कारण कल्पना के सिवाय faast कोई कारण समझ न श्राता हो, उन्हें अनुभव के नामपर कैसे माना जासकता है। और तर्क से ग्डत होजानेपर भी तर्क क्षेत्र के बाहर कैसे कहा जा सकता है । मतलब यह कि ये सनकनाएँ है । तर्क के आगे इनका कोई मूल्य नही । इनके आधार पर कोई भावना या श्रद्धा खड़ी होगी तो उसका भी मूल्य तर्क के श्रधापर खड़े होने की अपेना नहीं के बराचर होगा |
सत्य की दृष्टि से जिसका मूल्य न हो. उसका क्षेत्र यदि विशाल हो, निर्णय शीघ्र से शीघ्र हो तो भी किस कामका १ क्योकि वास्तव मे तो वह शून्य के बरावर ही हुआ ।
६ – कल्पनाएँ तो अप्रामाणिक है उनकी बात छोड़ दो जाय, इसके बाद बाकी सत्र प्रभा गोमे तर्क का क्षेत्र विशाल है । यद्यपि सभी ज्ञानो का मूल प्रत्यक्ष है इसलिये तर्क का मूल भी प्रत्यक्ष है परन्तु प्रत्यक्ष भूत-भविष्य के तथा देशान्तरित पदार्थों को नहीं जान सकता, जब तर्क उन्हें जा सकता है इसलिये पियकी दृष्टिसे तर्क से भी विशाल है । यों कहना चाहिये fear प्रत्यक्ष का फैला हुआ प्रकाश है।
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१० - - तर्क की महत्ता बतलाने का मतलब यह नहीं है कि श्रद्धा की महत्ता कम की जाय । तर्क और श्रद्धा दोनों ही जीवन के लिये श्रत्यु पयोगी है। इतना ही नहीं अगर सत्येश्वर के भार्ग में चलना चाहे तो दोनों का परस्पर सहा - चक होना आवश्यक है । अन्यथा तर्कहीन श्रद्धा श्रद्धा होने के कारण कुत्र काम न कर
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सकेगी बल्कि कुपथ मे लेजायगी, और श्रद्धाहीन तर्क कोरी कसरत होगी। इसलिये जरूरत इस बात की है कि कल्पना, या रूढ़ि आदि के आधारपर श्रद्धा को खड़ा न किया जाय उसे तर्क के याधारपर खड़ा किया जाय। हा । यथाशक्य तर्क का उपयोग करने के घाट मनुष्य को श्रद्धा का सहारा अवश्य लेना चाहिये । क्योंकि श्रद्धा की स्थिरता के बिना ज्ञान का उपयोग नही होता ।
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११ - - कल्पना भावना सम्भावना अनुभव तर्क श्रद्धा इन शब्दो का ठीक ठीक अर्थ उनका उपयोग आदि जान लेने से इस प्रकरण को समझने में बहुत खुसीता होगा।
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कल्पना [ फुडो ] इसका वस्तुस्थिति से सम्बन्ध नहीं होता, संस्कार में जमे हुए चित्रों को रुचि अनुसार जोड़ तोडकर या गुणाकार कर इसका निर्माण किया जाता है । सत्य के मार्ग में इसका कोई उपयोग नहीं ।
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भावना [भावो ] यह एक विचार है जो कल्पना सरीखा निराधार नहीं है, पर प्रमाण के आधारपर भी नहीं खड़ा है। इच्छा या रुचि की प्रगट करता है।
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सम्भावना ( माची) यह तर्क का हल्का रूप है। इसमें किसी न किसी हेतु से किसी I वात के होने की आशा की जाती है। तर्क के समान निश्चित सम्बन्ध न होने से इसपर पूरा विश्वास तो नही किया जासकता पर कांधे से ज्यादा किया जासकता है । कभी कभी इसका नियत सम्बन्ध ऐसा व्यक्त होता है कि शब्दों नहीं कहा जासकता ।
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"अनुभव [इhिai ] इसका अर्थ है वा वार की घटना से कुछ विचारपूर्ण शिक्षा लेना | सावारण प्रनुभव करने से यहां मतलब नहीं है । जिससे मनुष्य अनुभवी कहलाता है उसीसे यह मतलब है । यह सम्भावना से भी अधिक प्रामाणिक है। तर्क के पहिले नाना प्रयोगांसे जो अनुभव होता है उसीसे तर्क को जीवन मिलता है।