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सत्याभूत
भाग मानना चाहिये ।
६- यद्यपि कहीं कही तर्क की जांच प्रत्यक्ष से करना पड़ती है परन्तु उससे भी अधिक तथा महत्वपूर्ण स्थानो मे प्रत्यक्ष की भी जाच तर्क से करना पड़ती है। क्योंकि प्रत्यक्ष तो किसी एक जगह और एक काल में होता है इसलिये उसमे धोखा खाने की सम्भावना अधिक है परन्तु तर्क तो सैकडो प्रत्यक्ष के आधार पर खड़ा होता है, त्यसैक(स्थानो के और सैकडो समयो के होने से काफी जमाये हुए होते हैं इसलिये उनके प्राधार से जो निर्णय होता है वह काफी विश्वसनीय, किसी एक समय के प्रत्यक्ष से भी विश्वसनीय होता है।
कल्पना के दारा मनुष्य लोक परलोक
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भवि, यह वहा चाहे निर्णय का मस्ता भोगापरक जगाने के लिए अनुभव दिव्यज्ञान, योगअज्ञान, अन्तरिक प्रत्यन, केवलज्ञान आदि नाम है, पर सत्य के भागे में इनका मूल्य कुछ नहीं के बराबर है। सत्य as नहीं real | पर ये बी कि कल्पना है। कुछ लोगो ने यह करना की कि एक मनुष्य aria aya को a Ranara Harana arन लेता है। नर्कने कहा कि भूतकाल की राजना तभी कहा जाता है अ स्वाकों में से सबसे पहिली जाय, परन्तु प
७- भावना और श्रद्धा का स्थान काफी ऊँचा है, पर भावना और कल्पना को एक न समझना चाहिये। भावना और श्रद्धा कल्पना का भी सहारा ले सकती है और तर्क यादि का भी सहारा ले सकती है। भावना और श्रद्धा को सम्राज्ञी के समान समझना ठीक है क्योंकि
से पहिली वस्त्र मानी नहीं जामकती तत्र जानो कैसे आयी इनकी प्रतिग पर्याय कोई मानी नहीं जासकती. तब उसे भी कोई नहीं जान सकता त भूमय की
मानव जीवन की गति भावना और श्रद्धा के अनुसे कोई पूरे पदार्थ को कैसे जान सकता है
सार होती है, पर तर्क को उस दास न समना चाहिये किन्तु मन्त्री समझना चाहिये । दास का काम मालिक की इच्छा के अनुसार नाचना होना है, जब कि मन्त्री का काम मालिक के हित के अनुसार सलाह देना होता है । सान्ता माना मालिक के हाथ में है । परन्तु मालिक का अधिकार विशेष होने से मन्त्री की विशेष योग्यता उसे नहीं मिलजाती । इसलिये निर्णय करने में तर्क को प्रधानता देना चाहिये ।
इस कार ऐसी सर्वक्षता सिया है। ऐसी झूठी वातो को अन्धश्रद्धादि के कारण टिका भजे ही लिया जाय पर वस्तव में मी बातें दुनिया की बडी से घटी झूठ है।
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- यद्यपि कल्पना का स्थान तर्क से विशाल हे परन्तु उसमे प्रामाणिकता न होने से उसका हल्के के सामने न के समान है । कल्पना में तथ्य का विवेक नहीं रहता, सर्फ अपनी आशा को पूर्ण करने की इच्छा ही है। जैसे सपने में अमृत पीने की अपेक्षा विकता का सावार भोजन अधिक मूल्य मन है उसी तरह कल्पना के स्वप्नों की अपेक्षा र्क की वास्तविकता अधिक मूल्यवान है ।
setore faareera की बहुतसी चानें है, जिन्हें लोगो ने दिव्यज्ञान आदि के नाम
से
मानलिया है पर तर्क ने उनका अनेक तरह से खंडन कर दिया है। तकसे खंडित होनेपर भी किसी बात को अनुभव या प्रत्यक्ष कहना गलत है, ये सिर्फ कल्पनाएँ हैं ।
बहुत से लोग इन कल्पनायो को अनुभव श्रादि का विषय बहुकर कहा करते हैं कि ये बाने तर्कका विषय नहीं हैं। पर यदि ये तर्क के विषय न होती तो तर्फ स ति कैसे होजाती
तो
यह है कि जो वात अनुभव के क्षेत्र के बाहर है उसे तो अनुभव का विषय कह दिया जाता है और जिसका तर्क से खडन होजाता है उसे तर्क