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________________ [२५] सत्यामृत है वे जीवित हैं। जिनमे सिर्फ किसी तरह पेट धन का त्याग ही करना पड़ा ईसामसीहने ठोक भरने की भावना है, जिनके ओवन में शानद ही कहा है कि सईक छिद्रम से टनिकल सकना नहीं, जनसेवा नहीं, उत्साह नहीं वे म है। परन्तु स्वर्ग के द्वार में से धनवान नहीं निकल जीवित मनुष्य प्रतिकूल परिस्थिति में भी वहत कुछ सकता 1 गरीबी ही मेरा माग्य है । मृत निबन करेगा और मृत मनुष्य अतुल परिस्थिति में गरीबी का रोना रोता रहेगा। इतना धन यो मिल भी अभाव का रोना रोता रहेगा। कुछ उदाहरणों जाता तो या करता और उतना मिल जाताना त्या से यह बात स्पष्ट होगी। करना, अब क्या कर सकता हूँ? एक जीवित दुध सोचेगा कि इन्द्रयो जीवित पुरुप सोचेगा-मुझे शक्ति मिली है, शिथिल होगई तो क्या हुआ ? अव लडके बच्चे घर से बाहर का विशेष अनुभव मिला है उस का काम सम्हालने लायक होगये हैं, अब मैं घर को उपयोग पत्नी की, माता पिता की, समाज की तरफसे निश्चिन्त हूँ, यही हे समय है जब मैं जन देशकी सेवा में कारगा 1 भूत पुरुष कमान का सेषा का कुछ काम कर सकता हूँ। जबकि सेना गतगत या लीका रोना रोतेरोते कि हाय मुझे मृत वृद्ध शरीर का घर का, वेटो की नालायकी सीता सावित्री न मिली, हिन झाटेगा। जनसेवाको का राना रोता रहेगा। वात निकलते ही घरका रोना लेफर बैठ जायगा। जीवित युवक सोचेगा ये ही तो दिन है जीवित नारी सोचेगी कि नारियाँ शक्ति का जब कुछ किया जा सकता है, कल जब बुढापा अवतार हैं हम अगर निर्बल मूख ई तो वीर और भाजायस तत्र क्या कर सकेंगा निश्चिन्तता विद्वान कहा से आयेंगे? शाक्त के बिना शिव क्या से श्राराम बुढ़ापे में किया जासकता है, जवानी करेगा घर हमाग आर्थिक कार्य क्षेत्र है, केदतो कर्म करने क ालये हैं। अगर यहां कर्म किया खाना नही जनसेवा के लिये सारी दुनिया है। तो उसका असर बुढ़ापे में भी रहेगा। मृतयुवक बाहर निकलने में शर्म क्या ? पति को छोड़कर सचिगा कि ये चार दिन ही तो मौज उडाने के हैं जब सब पुरुप पिता पुत्र या भाई के समान हे तप अगर इनदिन मे बैलकी तरह जुते रहे तो भोग पर्दा कसका ? विलास कव कर पायेंगे ? बुढा ( बाप ) कमाता ही है, जब मरेगा तब देखा जायगा, अभी तो मृत नारी रूढ़ियों की दुहाई देगी, अवला. पन का रोना रोयेगी, जीत नारियों की निन्दा जीवित धनवान सोचेगा कि धन का उप करेगी, सुपिन के गीत गायेगी। योग यही है कि वह दूसरों के काम आवे । पेट में इन उदाहरणों से शोषित मनुष्य और मृत तो चार ही रोटियाँ जानेवाली है, बाकी न तो मनुष्य की मनोवृत्ति का और धन के कार्यों का किसी न किसी तरह दूसरे हो वानेवाले हैं तव पत्ता लग जायगा । साधारणत: मनुष्यों को जीवन जनसेवा मे दान ही क्यों न करू मृत धनवान की दृष्टिसे इन दो भागों में बोट सकते हैं। कुछ फैलूसी में ही अपना कल्याण समझेगा। जिन्दे कुछ मुर्दे या अधिकाश मुर्दै । परन्तु विशेष जीति निर्धन सोचेगा-अपने पास धन रूप में इसक पाच भेद होते हैंपैसा दो है ही नहीं, जिसके छिनने का डर होमृ त, २ पापनाविन, ३ जीवित, ४ तिच्या तव धर्म से क्यों चुकू । मुमै निर्भय रहना चाहिये, जीवित्त, ५ परमजीवित । नगा खुदासे बड़ा 11 में पैसा नहीं दे सकता भृत - (मरलू) जो शरीर में रहते तो तन मन तो दे सकता हूँ, बद्दी दूंगा, धन को हुये भी स्वपर कल्याणकारी कर्म नहीं करते, जो कीमत सच्चे तन मन से अधिक नहीं होती ! महा पशुके समान लक्ष्यहीन या पालसी जीवन बिना धीर बुद्ध प्रादि महापुरुषों को जनसेवा के लिये है वे मृत हैं । उदाहरण कर दिये गये हैं। मौज करो।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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