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हायक।
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संग्रह उचित है, अथवा वृद्धावस्था आदि के लिये लेती है, कष्ट की कमी को धर्म की कमी समझ संग्रह करे जब अर्थोपयोगी सेवा के लिये मनुष्य लेती है इसलिये कष्ट की वृद्धि को धर्म की वृद्धि अक्षम हो जाता है तब भी संग्रह क्षम्य है। ऐसे मानती है। जहां कष्ट में और धर्म में कार्य-कारणअपवादा को छोड़कर मनुष्य को अर्थसंग्रह नहीं भाव होता है वहां तो ठीक भी कहा जा सकता करना चाहिये। पाराम करने का तो मनुष्य को है परन्तु जहा कष्ट का कोई साध्य ही नहीं होता अधिकार है परन्तु वह कर्म के साथ होना चाहिये। है वहा भी जनता दोनो का सम्बन्ध जोड़ लेती इसलिये जो मनुष्य होकर के भी और कर्म करने है। जैसे कोई आदमी किसी की सेवा करने के की शक्ति रख करके भी कर्म नहीं करता है वह लिये जागरण करे भूग्य प्यास के कष्ट सहे तो अधूरा यादमी है और ऐसा अधूग है जिसे टोका समझा जा सकता है कि उसका यह कष्ट परोपजा सकता है जिसपर आक्षेप किया जा सकता है। कार के लिये था इसलिये उसका सम्बन्ध धर्म से
जो लोग फर्म की शक्ति रखते हा भी कर्म था, परन्तु जहा कष्ट का साध्य परोपकार आदि हीन संन्यास ले बैठते हैं, पाए तपस्याओं मे- "
न हो वहा भी ऐसा समझ बैठना भूल है। जिनसे अपने को और समाज को लाभ नहीं-- अमुक मनुष्य ठंड में बाहर पड़ा रहता है अपनी शक्ति लगाते हैं, वे इसी श्रेणी में आते और धूप में खड़ा रहता है इसलिये बड़ा धर्मात्मा है । अथवा इस प्रकार के निरुपयोगी जीवन को है, ऐसे ऐसे भ्रमो में पड़कर जनता दम्भियों की चनने अगर दृश्यमय बना लिया है तो उनकी खूब पूजा करती है और दम्मियों की सृष्टि करती श्रेणी और भी नीची होजाती है वे एकान्न विचा- है। अमुक मनुष्य ब्रह्मचारी है अर्थात विवाह रक की श्रेणी में (जिसका वर्णन नं. ४ में किया नहीं करता इसी से लोग उसे धर्मात्मा समझ गया है। गिर जाते हैं। ऐसे मनुष्य योगी सिद्ध लेंगे। वे यह नहीं सोचेंगे कि ब्रह्मचर्या से उसने महात्मा आदि कहलाने पर भी जीवन के लिये कितनी शक्ति संचित की है? कितना समय श्रादर्श नहीं हो सकते। उनकी कर्महीनता निर्ब बचाया है और उस शक्ति तथा समय का समाज. लता का परिणाम है. परिस्थिति विशेष में वह सेवा के कार्य में कितना उपयोग किया है। एक लक्ष्य भले ही हो सके परन्तु आदर्श नहीं। आदमी विवाहित है इसीलिये छोटा है, लोग यह ___७ कर्मठ विचारक ( कज्जेर इकर)- यह न सोचोगे कि विवाहित जीवन से उसने शक्ति उत्तम श्रेणी का मनुष्य है । जो ज्ञानी भी है और
M P को बढ़ाया है या घटाया है । सेवा के क्षेत्र मे वह कर्मशील भी है, वह आत्मोद्धार भी करता है
कितना बढा है १ एक श्रादमी मनहूसी से रहता और जगदुद्वार भी करता है। परन्तु इसके जीवन
है, उसके पास सात्विक विनोद भी नहीं है, बस, म एक तरह से काम का अभाव रहता है। इस वह बड़ा त्यागी और महात्मा है। परन्तु दूसरा श्रेणी का व्यक्ति कभी कभी भ्रम में भी पड जोकि हँसमुख और प्रसन्न रहता है, अपने व्यवजाना है, वह दुख को धर्म समझने लगता है। हार से दूसरे को प्रसन्न रखता है, निदोष क्रीडायो यह बात ठीक है कि समाजसेवा के लिये तथा मे वह सुखसृष्टि करता है तो वह छोटा है। आत्मविकास के लिये अगर कष्ट सहना पड़े तो जनता की. अन्ध-कसौटी के ऐसे सैकड़ों दृष्टान्त अवश्य सहना चाहिय, परन्तु कष्ट उपादेय नहीं पेश किये जा सकते हैं जहा उसने नरकको धर्म है। निरर्थक कष्ट को निमन्त्रण देना उचित और स्वर्ग को अधर्म समझ रक्खा है। नहीं है। .
____ कर्मठविचारक श्रेणी के बहुत से लोग इस - · जनता में एक भ्रम चिरकाल से चला कसौटी पर ठीक उतरने के लिये जानबूझकर श्राता है। वह कष्टको और धर्मको सहचर समझ अपने जीवन को सुखहीत बनाते हैं। जिस