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________________ सत्यामृत - - - श्रानन्द से दूसरे को कुछ हानि नहीं है ऐसे परन्तु अन्धों के लिये वह कागज का टुकड़ा है। आनन्द का भी वे वहिष्कार करते रहते हैं इस ऐसे महापुरुष सैकड़ों होगये हैं परन्तु लिये वे जनता में अपना स्थान चा बना लेते दुनिया ने उसे कागज का टुकड़ा कहकर, मामूली हैं परन्तु इससे सिर्फ व्यक्तित्व की विजय होती समझ कर भुलादिया है। परन्तु जो पहिचान है जनता को आदर्श जीवन नहीं मिलता। जा सके उनका उल्लेख आज भी किया जासकता __इस श्रेणी का मनुष्य सिपाही है सद्गृहस्थ है। उनमें म. राम, म. कृष्ण और म. मुहम्मदका नहीं । वह त्यागी है, समाज-सेवी है और वन्द नाम विना किसी टीका टिप्पणी के लिया जास. नीय भी है परन्तु पूर्ण नहीं है-आदर्श नहीं है। कता है। इनमें उपर्युक्त सब गुण दिखाई देते हैं । --आनन्दी कर्मठ विचारक (नन्द कब्जेर इकर)- ये सेवा के लिये वड़े से बडे कष्ट भी सहसके हैं ___ यह आदर्श मनुष्य है, जिसमें संयम, और एक सद्गृहस्थ के समान स्वाभाविक समाज-सेवा और त्याग आदि होकर के भी जो आनन्दमय जीवन भी व्यतीत कर सके है। ये दुनिया को सुखमय जीवन बिनाने का आदेश, लोग निःसन्देह आनन्दी-कर्मठ विचारक श्रेणी के उपदेश आदि ही नहीं देता किन्तु स्वयं आदर्श उपस्थित करता है । वह आवश्यक कठों को नहीं __म. बुद्ध, म. ईसा और म. महावीर के अपनातान आवश्यक कष्टों से मुंह छिपाता है। विषय में कुछ लोगों को सन्देह हो सकता है कि जनता को अन्धकसौटी की उसे पर्वाह नहीं होती इन्हें सातवी श्रेणी में रखना चाहिये या आठवीं वह सिर्फ सेवा और सदाचार से आत्मोद्धार श्रेणी से ? ये महापुरुष किस श्रेणी के थे यह और जगदुद्धार करता है। उसका जीवन आइ. यात तो इतिहास का विषय है, परन्तु यह कहा म्बर और पावरण से हीन होता है वह योगी जा सकता है कि जिसप्रकार का कर्ममय संन्यासी है। वह बालक भी है, युवक भी है, वृद्ध भी है, जीवन इन लोगों ने बिताया वैसा जीवन बिता हँसता भी है, ज्वेलता भी है और डटकर काम का मनस्य आठवीं श्रेणी में शामिल किया भी करता है, गुरु भी है और दोस्त भी है, अमीर जायगा। भी है फकीर भी है, भक्ति और प्रेम से गाता भीम ईसा और म. बुद्ध के विषय में तो है, और दूसरों के दुःख में रोता भी है छोटी बड़ी निःसन्देह रूप में कहा जा सकता है कि ये आठवीं सभी बानो को चिन्ता भी करता है परन्तु अपने श्रेणी के थे। म ईसा में जैसा चालक प्रेम था मार्ग में असंदिग्ध होकर आगे बढ़ता भी जाता उससे यह साफ कहा जा सकता है कि उनके है, इस प्रकार सब रसों से परिपूर्ण है। उसके जीवन में बालोचित हास्य-विनोद अवश्य था। जीवन का अनुकरण समस्त विश्व कर सकवा जनसाधारण में मिश्रित हो जाने की वृत्ति से भी है। छोटा आदमी भी कर सकता है बड़ा आदमी यही बात मालूम होती है। भी कर सकता है फिर भी उससे जीवन के चक्र म बुद्ध के मध्यम मार्ग से तो यह बात यो फुल पा नहीं पहुँचता । वह असाधारण है, पूरी है, पर लोगों को पहुँच से बाहर नहीं है, सैद्धान्तिक रूप में भी मालूम हो जाती है तथा बुद्धत्व प्राप्त होने के बाद जो उनने अनावश्यक मुलम है । वह भारी है परन्तु किसी के सिर का तपस्याओं का त्याग कर दिया उससे विदित होता घोक नही है। है कि म. बुद्ध निर्दोष आनन्द को पसन्द करते ऐसे लोगों को कभी कभी दुनिया पहिचान थे। घल्कि कभी कभी उनके शिष्यों को भी उनके नहीं पाती अथवा पदुन कम पहिचान पाती है। थानन्दी जीवन पर कुछ असन्तोप सा उत्पन्न जिन बोगी नो नियं या मुन्दर चित्र हो उठता था। निःसन्देश या शिष्यों का प्रधान
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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