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________________ १ गर्भजीवन, २ बालजीवन, ३ युवाजीवन, पर जा पहुंचता है। ये लोग दुनिया को भार के ४ वृद्धजीवन, ५ बालयुवाजीवन, ६बालवृद्धजीवन, समान हैं। ७ युवावृद्धजीवन, ८ घालयुवावृद्ध जीवन । दूसरे __इस तरह के लोग देखने में शान्त, किन्तु नामों में इसे यों कहेंगे:-१ जड़ २ अानदी, तीन स्वार्थी होने के कारण अत्यन्त क्रूर होते हैं। ३ कर्मठ, ४ विचारक, ५ आनदी-कर्मठ, ६ आनंदी ३ कर्मठ ( कब्जेर ) साध्य और साधन के विचारक, कर्मठ विचारक, ८ श्रानंदी-कर्मठ । भेद को भूलकर बहुत से लोग कर्म तो बहुत विचारक। करते हैं परन्तु कर्म का लक्ष्य क्या है इसका उन्हें १जड़ ( उम्म)-जिसके जीवन में न आनन्द कमी विचार भी पैदा नहीं होता। जिस किसी है न विचार, न कर्म । यह एक तरहका पशु है या तरह सम्पत्ति एकत्रित करते हैं परन्तु सम्पत्ति का जड़ है। उपयोग नहीं कर सकते। उनकी सम्पत्ति न तो २ आनन्दी ( नन्द )-अधिकांश मनुष्य या दान में खर्चा होती है न भोग में खर्च होती है। प्रायः सभी मनुष्य इसी प्रकार जीवन व्यतीत इस प्रकार सम्पत्ति का संग्रह करके वे दूसरों को करना चाहते हैं परन्तु उनमें से अधिकाश इसमें कंगाल तो बनाते हैं परन्तु स्त्रयं कोई लाभ नहीं असफल रहते हैं। असफलता तो स्वाभाविक ही उठाते।। है क्योंकि प्रकृतिको रचना ही ऐसी ही है कि धन कोई स्वयं सुख या ध्येय नहीं है परन्तु अधिकाश मनुष्य इस प्रकार एकागी जीवन सुख और ध्येय का साधनमात्र है। अगर धन स व्यतीत कर ही नहीं सकते । आनन्द के लिये शान्ति न मिली, भोग-ज मिला, तो एक पशुविचार और कर्सका सहयोग अनिवार्य है। थोड़े जीवन में और मानवजीवन में अन्तर क्या रहा। बहुत समय तक कुछ लोग वह बालजीवन व्यतीत जिसने धन पाकर उससे यश और भोग न पाया, कर लेते हैं परन्तु कई तरह से उनके इस जीवन दुखियों का और समाजसेवकों का आशीर्वाद न का अन्त हो जाता है । एक कारण तो यही है कि लिया, उसकी सम्पत्ति उसके लिये भार ही है। इस प्रकार के जीवन से जो लापर्वाही सी आ मृत्यु के समय ऐसे लोगो को अनन्त पश्चाताप जाती है उससे जीवन संग्राम में वे हार जाते हैं, होता है। क्योंकि सम्पत्ति का एक अणु भी उन दूसरे कर्मठ व्यक्ति नन्हे ,लूट लेते हैं । वाजिद- के साथ नहीं जाता । ऐसी हालत में उनकी अली शाह से लेकर हजारों उदाहरण इसके अवस्था कोल्हू के बैल ने भी बुरी होती है। कोल्हू नमने मिलेंगे। आज भी इस कारण से सैकड़ों का बैल दिन भर चक्कर लगाकर कुछ प्रगति नहीं श्रीमानों को उजड़ते हुए और उनके चालाक कर पाता, फिर भी उसके चक्कर लगाने से दूसरे मनीमो को या दोस्त कहलानेवालों को बनते हुए को कुछ न कुछ लाम होता ही है। परन्तु ऐसे हम देख सकते हैं। इनके जीवन में जो एकान्त लोग न तो अपनी प्रगति कर पाते हैं न दूसरों बालकता आ जाती है, उसी का दुष्फल ये इन की, अर्थात् न तो अपने जीवन को विकसित या रूपों में भोगते हैं । इस जीवन के नाश का दूसरा समुन्नत बना पाते हैं न दुनिया को भी कुछ लाम कारण है प्रकृति-प्रकोप । ऐयाशी उनके शरीर को पहुंचा पाते हैं। .. निर्वल से निर्वल बना देती है। ये लोग दूसरों से विचारक (ईकर )-कर्महीन विचारक सेवा कराते कराते दूसरों को तो मारते ही है जघन्य श्रेणी का न सही, किन्तु अकर्मण्य होने से परन्तु स्वयं भी मारे जाते हैं, इसके अतिरिक समाज के लिये भारभूत है। इस श्रेणी में ऐसे डाक्टर वैगो की सेवा करते करते भी मरे जाते भी बहुत से लोग आ जाते हैं जो समाज की ष्टि हैं। इस प्रकार इनका जीवन असफलता की सीमा में बहुत ऊंचे गिने जाते हैं। बहुत से साधुवेषी
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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