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________________ - - - वास्तव मे ये उपजातियाँ एक बड़े कुटुम्बके समान फिर जो लोग व्यापारिक श्रादि सुविधा के है। इनकी उत्पत्ति की जो किंवदन्तियाँ प्रचलित कारण दूर बस जाते हैं. उनको दूरस्व देशा में हैं, उनसे भी यही बात मालूम होती हैं । जैसे विवाह सम्बन्ध की सुविधा होना चाहियें अन्यथा अग्रवालो की उत्पत्ति राजा अग्रसेन से मानी जाती उनकी वैवाहिक कठिनाइयाँ और बढ जायेंगी। है, उनके अठगह पुत्रों से अठारह गोत्र बने, इस इस प्रकार उपजाति विवाह के विषय में दृष्टि से अग्रवाल एक बड़ा कुटुम्ब ही कहलाया। तथा अन्य प्रकार के विजातीय विवाहो के विषय इस प्रकार ये उपजातियाँ बडे बडे कुटुम्ब ही है। में लोग अनेक प्रकार की शका करने लगत ह. मित्रवर्ग नातेदार वर्ग भी इसमें शामिल हुया है। सकचित क्षेत्र में विवाह-सम्बन्ध करने के लाभ य उपजातियॉ मतभेद स्थानभेद आदि के बनलाने लगते हैं। उन पर विचार करना आव. कारण बनी हैं। इनके गोत्र भी इन्ही कारणों से श्यक है । इसलिये सने मे शंका समाधान के बने है, जिनमें आजीविका वगैरह के भेट भी रूप में विचार किया जाता है। कारण हैं। जिस जमाने में आने जाने के सारन शंका-विजातीय विवाह से जानीय संग. बहुत कम थे और लोग दूसरे प्रान्तो मे बस जाते ठन नष्ट होजायगा । संगठन जितने छोटे क्षेत्र में थे, तब अपने मूलग्राम या प्रान्त के नाम से रहे उतना ही होता है । उसमे अवस्था भी प्रसिद्ध होते थे। ये ही नाम गोत्र या उपजाति घडी सरलना में बनाई जा सकती है। बन जाते थे। कभी कभी प्रधान पुरुषो के नामसे समाधान- संगठन की ता क्षेत्र की ये गोत्र बन जाते थे। लघुना पर नहीं, भावना को विशेषता पर है। सग्यू के उस पार बसने वाले सरयूपारि मुसलमान लोग भारत में मरोड़ा है, परन्तु श्रादि के समान भारत में सैकड़ा हुडियाँ बनी उनका आ संगठन है वह हिन्दुया को किसी है और ये जाप्ति नामसे प्रचलित हैं, यदि सबका जाति का नहीं है। संख्या से छोटी होने पर भी इतिहाँस खोजा जाय तो एक बडा पोथा अनेगा। वह संगठन में मुसलमानों की बरावरी नहीं कर सबका विधिवद्ध इतिहास उपलब्ध नहीं है। सकती । इबर इन छोटे छोटे संगठनों को महत्व परन्तु उनके नाम ही इतिहास की बड़ी भारीदने से बहा सगठन रुका है। हिंदुओं की बोटी सामग्री है। साथ ही कुछ इतिहास मिलता भी छोटी उपजातियों का संगठन समग्र हिंदुओं के है, उस परसे बाकी का अनुमान किया जा सगठन में बाधा पैदा करता है। फिर राष्ट्र का सकता है धर्मग्रन्थों में भी इन जातियों की संगठन तो और भी दूर है। इस प्रकार यह छोटा उत्पत्ति के विषय में बहुत कुछ लिखा है। छोटा सगठन इता तो पैदा करता हो नहीं है इन जातियों के भीतर शारीरिक, मानसिक परन्तु विशाल संगठन के मार्ग में रोड़े अटकाता या व्यापारिक ऐसी कोई विशेषता नही है जो है। अगर यह बना पैश भी करता तो भी इन की सीमा कही जा सके। अवसर पढन पर विशाल मगठन को रोकने के कारण यह हेय ही किसी सुविधा के लिये कुछ लोगोने अपना सघ होता। दूसरी बात यह है कि छोटी छोटी जातियों बना लिया और उसीके भीतर सारे व्यवहारो को के संगठन का याखिर मतलब क्या है ? क्या कैद कर लिया। श्राज इस प्रकार की उपजातियां इनका कोई सा स्वार्थ है जिसका संगठन के मेसी अनेक उपजातियों हैं जिनकी जनसंख्या द्वारा रक्षण करना हो ? आर्थिक स्वार्थ तो विशेष कुछ सैकड़ो या हजागे में है। से छोटे छोटे प्रकार की राजनैतिक सीमा के साथ बंधा हुआ क्षेत्रो मे विवाह- स्मन्ध के लिये बडी अडवन है, उसका इन टुकड़ियों से कोई सम्बन्ध नहीं पड़ती है और चुनाव के लिये इतना छोटा क्षेत्र है। एक राष्ट्र के आर्थिक और राजनैतिक स्वार्थ मिनता है कि योग्य चुनाव करना पडा कठिन है। रक्षण के लिये एक संगठन की बात कही जाय तो
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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