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किसी प्रकार ठीक भी है, परन्तु जाति नामक हुक- अथवा थोड़ी देर को इनकी जरूरत हो तो ड़ियो का ऐसा विशेष स्वार्थ नहीं है जो एक जाति भी विज्ञानीय विवाह से इनका नाश नहीं होता। का हो और दसरी का न हो । धार्मिक स्वार्थ की जैसा कि गोत्री का नाश नहीं होता। श्री जन्म दुहाई दी जाय तो भी ठीक नहीं है। पहिले सो से जिस गोत्र की होती है, विवाह के बाद उसका घों के स्वार्थ ही क्या है। एक धर्मवाले दसरे गात्र वढनकर पति का गोत्र हो जाता है। फिर धर्म पर आक्रमण करें तो धर्म के नाम पर संग.
मी गोत्रों की सीमा नही टूटती। इसी प्रकार उन होना चाहिये, न कि जाति के नामपर, फिर इन छोटी छोटी जातियो का भी हो सकता है। इन उपजातियों का धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है। साधारणत: स्त्री पुरुष के घर में जाती है, इसएक उपजातिके भीतर अनेक धर्म पाये जाते हूँ
लिये खो की जाति वही हो जायगी जो उसके
म और एक ही धर्म के भीतर अनेक उपजातियाँ पाई
पति की है। इस प्रकार जाति संगठन का गीत जाती हैं। इस प्रकार धर्मरक्षण के लिये भी ये गानेवालों के लिये ये जातियाँ बनी रहेंगी, और उपजातियॉ कुछ नहीं कर सकती।
विवाह का क्षेत्र विशाल हो जाने से सुभीता भी ___ कहा जा सकता है कि थोड़ासा दान करके । या शक्ति खर्च करके छोटी जाति को लाभ पहुँ
इस विषय में एक बार एक भाई ने कहा चाया जा सकता है, बड़ी जाति में यह काम नहीं था कि यह तो लियो का वडा अपमान है कि किया जा सकता, अगर समग्र भारत की एक ही विवाह से उन्हें अपनी जाति से भी हाथ धोना जाति हो तो हमारी थोड़ीसी शक्ति किस काम पड़े। परन्तु से भाइयों को समझना चाहिये आयगी ? उतने बड़े क्षेत्र के लिये उसका उपयोग
कि अगर इसे अपमान माना जाय तो यह अपहो न होगा।
मान विजातीय विवाह से सम्बन्ध नहीं रखता,
इसकी जड़ बहुत गहरी है। आज कल आखिर इस प्रकार का प्रश्न करनवाले यह बात खियों को गोत्र से और कटस्व से तो हाथ धोना भूल जाते हैं कि छोटी छोटी जातियों की कैद न
न ही पड़ता है । जहा सूतक पातक माना जाता है, रहने से जिस प्रकार क्षेत्र विशाल होजायगा उसी प्रकार शक्तियों लगानेवालो की संख्या भी भी तो
वहा विवाह के बाद पितृकुल का सूतक तक नहीं चट जायगी। श्राज जो हम अपनी छोटीसी लगता, और पातकुल का लगता है। इसलिय जाति के लिये दान करते हैं या जो शक्ति लगाते
यह अन्याय बहुत दूर का है। जब नियों का हैं उसका लाम दूसरे नहीं उठापा, परन्तु दूसरे
कुल, गोत्र आदि बदल जाता है तय एक कल्पित
से भी तो इसी प्रकार अपनी जाति के लिये कार्य
जाति और बदल गई तो क्या हानि हुई असती
बात तो यह है कि यह मानापमान का प्रश्न हो करते हैं जिसका लाभ हम नहीं उठापावे। अगर
र नहीं है। विवाह के बाद स्त्री और पुरुष का इस प्रकार छोटी छोटी जातियों में सब लोग
एकत्र रहना तो अनिवार्य है. ऐसी हालत में अपनी शक्ति लगाने लगे तो सभी का विकास
किसी एक को दूसरे के यहा जाना पडेगा, और रुक जाय क्योंकि जीवन के लिगे जिन कार्यों की
अपने को हर तरह उसी घर का बना लेना आवश्यकता है उनका शताश मी एक एक गति पड़ेगा! अगर ऐसा न किया जायगा और कुल पूरा नहीं कर सकता । एक दूसरे का अवलम्बन गोत्र गृह का भेद बना रहेगा तो दाम्पत्य जीवन दिये बिना कोई आगे नहीं बढ़ सकता । इसलिये अत्यन्त थशान्तिमन हो जायगा 1 इसलिये दोनो विशाल दृष्टि रखकर ही काम करने की श्राव- का एक करना अनिवार्य है। ऐसी हालत में इयता है इस प्रकार के छोटे छोटे संगठन जितने सुन्यवस्था के लियं स्त्री का गोन बदल दिया साधक हो सकते हैं, उससे कई गुणे वाधक होते गया तो क्या हानि है ? 'प्रपर कहीं पुरुष को है। इसलिये इनका त्याग करना ही श्रेष्ट है। स्त्री के घर रहना पड़े पोर पुरुष का गोत्र